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( १३७ ) तथागर्भस्य-उदरसत्त्वस्य हरणं-उदरान्तरसंकामणं गर्भहरणं एतदपि तीर्थंकरापेक्षयाऽभूतपूर्वसद्भावतो महावीरस्यजातं, पुरन्दरादिष्टेनहरिणेगमेपिदेवेन देवानन्दाभिधानब्राह्मण्युदरास्त्रिशलाभिधानाया राजपत्न्याउरेसंक्रमणाद्, एतदप्यनन्तकालभावित्वादाश्चर्यगेवेति ॥३॥xx x
तथा 'भगवतो महावीरस्य वन्दनार्थमवतरणमाकाशात् समवसरणभूम्यां चन्द्रसूर्ययोः शाश्वतविमानोपेतयोर्बभूवेदमप्याश्चर्यमेवेति ॥६॥
तथाचमरस्य-असुरकुमारराजस्योत्पतनं-अवगमनं चमरोत्पातः, सोऽप्याकस्मिकत्वादाश्चर्यकमिति, श्रूयतेहि चमरसञ्चाराजधानीनिवासी चमरेन्द्रोऽभि नवोत्पन्नः सन्नूश्चमवदधिनाऽऽलोकयामास, ततः स्वशीर्षोपरि सौधर्मव्यवस्थित शकं ददर्श, ततो मत्सराध्मातः शकतिरस्काराहितमतिरिहागत्य भगवतं महावीरं छद्मस्थावस्थमेकमांत्रिकी प्रतिमां प्रतिपन्नं सुंसमारनगरोद्यानवतिनं सबहुमानं प्रणम्यभगवंस्त्वत्पादपंकजवनं मे शरणमरिपराजितस्येति विकल्प्य विरचितघोररूपो लक्षयोजनमानशरीरः परिघरत्नं प्रहरणं परितो भभयन् गर्जन्नास्फोटयन् देवांस्त्रासयन्नुत्पपात, सौधर्मावतंसकविमानवेदिकायां पादन्यासं कृत्वा शक्रमाक्रोशयामास, शकोsपि कोपाजाज्वल्यमा नस्फारस्फुरत्स्फुलिङ्गशतसमाकुलं कुलिशं तं प्रतिमुमोच ॥७॥
सच भयात् प्रतिनिवृत्त्य भगवत्पादौ शरणं प्रपेदे, शक्रोऽप्यवधिज्ञानावगततद्व्यतिकरस्तीर्थकराशातनाभयात् शीघ्रमागत्य वज्रामुपसंजहार, बभाण च मुक्तोऽस्यहो भगवतः प्रसादात् नास्ति मत्तस्ते भयमिति ॥८॥
१ उपसर्ग-तीर्थकर अत्यन्त पुण्यशाली होते हैं। सामान्यतया उनके कोई उपसर्ग नहीं होते। किन्तु इस अवसर्पिणी काल में तीर्थंकर महावीर को अनेक उपसर्ग हुए। अभिनिष्क्रमण के पश्चात् उन्हें मनुष्य, देव और तियं चकृत उपसगों का सामना करना पड़ा। अस्थिकग्राम में शूलपाणि यक्ष ने महावीर को अट्टहास से डराना चाहा ; हाथी, पिशाच और सर्प का रूप धारण कर डराया और अंत में भगवान के शरीर के सात अवयवों-सिर, कान, नाक, दांत, नख, आँख और पीठ में भयंकर वेदना उत्पन्न की।
एक बार भगवान महावीर म्लेच्छ देश दृढभूमि के बहिर्भाग में आये। वहाँ पेढाल उद्यान के पोलासचैत्य में ठहरे और तेले की तपस्या कर एक रात्रि की प्रतिमा में स्थित हो गये । उस समय 'संगम' नामक देव ने एक रात में २० मारणान्तिक कष्ट दिए ।
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