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यौद्धापुत्र, प्रशास्ता (धर्मशास्त्र पाठक ), प्रशास्तृ पुत्र, मल्लकी ( राजविशेष ) मल्लकी पुत्र, लेच्छकी, लेच्छकिपुत्र और भी बहुत से मांडलिक राजा, युवराज, तलवार ( पट्टबंध-विभूषित राजस्थानीय पुरुष ) माडम्बिक ( एक जाति के नगर के अधिपति), कौटुम्बिक, इभ्य, अष्ठि ( श्री देवता) अंकित सुवर्णपट्ट-विभूषित धनपति), सेनापति, सार्थवाह आदि में से कई वंदना करने के लिए, कई पुजा करने के लिए, कई सत्कार-सम्मान करने के लिए, कई दर्शन करने के लिए, तो कई कुतुहल वश भगवान के पास जाने को तैयार हुए ।
कई लोग अर्थ निर्णय करने के लिए नहीं सुने हुए, भाव सुनेंगे, सुने हुए भावों को संशय रहित बनायेंगे। कई जीवादि अर्थ, पदार्थों में रहे हुए धर्म और नहीं रहे हुए धर्म से सम्बधित ( अन्वय-व्यतिरेक ) हेतु, कारण ( तर्क संगत या युक्तियुक्त व्याख्या) और व्याकरण (दूसरों के द्वारा पूछे गये अर्थों के उत्तर ) पछेगे
कई-सभी से अपने सब भांति के सम्बन्धों का विच्छेद करके, गृहवास से निकलकर अनगार धर्म को स्वीकार करेंगे या पाँच अणुव्रत या सात शिक्षावत रूप गृहिधर्म को स्वीकार करेंगे, कई जिनभक्ति के राग से और कई-यह ( दर्शन करने को जाना ) हमारी वंश परम्परा का व्यवहार है।
इस प्रकार विचार करके स्नान किया, बलिकर्म, कौतुकादि और मंगल रूप प्राथश्चित्त करके, सुन्दर वस्त्रों से सुसजित हुए। उन्होंने शिर पर और कंठ में मालाएँ धारण की।
___ मणि-सुवर्ण जडित अलंकार पहनें । सुन्दर हार, अर्द्धहार, तीन लडियों वाले हार, कटिसूत्र और अन्य भी शोभा बढ़ाने वाले आभरण धारण किये। देह के अवयवों पर चंदन का लेप लगाया।
कई घोड़े पर बैठे। इसी प्रकार हाथी, रथ, शिविका ( कुटाकर ढंकी हुई पालखी) और स्यंदमाणिका ( पुरुष प्रमाण लम्बी पालखी) पर सवार हुए, कई पैदल ही चारों ओर पुरुषों से घिरे हुए, आनन्द-महाध्वनि, सिंहनाद, बोल और कलकल महान शब्द से सारी नगरी को, घोष से यक्त क्षुभित महासमुद्र के तुल्यसी करते हुए चले । कुणिक का भगवान को अभिवंदन करने के लिए जाना
xxx। जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्केहत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवईण रघई दुरूढे ।
तपणं तस्स कूणियस्स रण्णो भिभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हथियरयणं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अहह मंगलया पुरओ अहाणुपुष्पीए संपट्ठिया, तंजहा
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