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(८१ ) आर्यो ! श्रमण भगवान महावीर ने गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों को आमंत्रित कर
कहा
आयुष्मान श्रमणो ! जीव दुःख से भय खाते हैं । तो भगवान दुःख किसके द्वारा किया गया है । जीवों के द्वारा, अपने प्रमाद से तो भगवान् ! दुःखों का वेदन ( क्षय ) कैसे होता है ?
जीवों के द्वारा, अपने ही अप्रमाद से.११ भगवान महावीर और भावी तीर्थंकर महापद्म.१ जीवन
(क) से जहाणामए अजो! अहंतीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, दुवालस संवच्छराई तेरसपक्खाछउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहि, पक्खेहिं ऊणगाइं तीसं वालाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता बावत्तरिवासाई सवाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं बुझिस्सं मुश्चिस्सं परिणिन्वाइस सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं।
__ एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवाहिती, दुवालस संवच्छराई तेरसपक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता, तेरसहिं पक्खेहि ऊणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावत्तरिबासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती बुज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिती।
-ठाण स्था ६/सू ६२/पृ० ८७१ आर्यों ! मैं तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहकर, मुण्ड होकर, अगार से अनगार अवस्था में प्रवजित हुआ। मैंने बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थपर्याय का पालन किया, तीस वर्षों में तेरह पक्ष कम काल तक केवलीपर्याय का पालन किया । इस प्रकार बयालीस वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर, बहत्तर वर्ष की पूर्णायु पालन कर मैं सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त होऊँगा।
___ इसी प्रकार अर्हत महापद्म भी तीस वर्ष तक गृहस्थास्था में रहकर, मुंड होकर, अगार से अनगार अवस्था में प्रवजित होंगे। वे बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थपर्याय का पालन करेंगे। तीस वर्षों में तेरह पक्षकम कालतक केवलीपर्याय का पालन करेंगे-इस
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