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(ट) भगवान के परिनिर्वाण के समय नव मल्लकीवंश और नव लिच्छवीवंश के गणराजाओं के पौषधोपवास
जं रयणि च णं समणे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणि च ण णव मल्लई नव लिच्छई कासीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो अमावसार पाराभोयं पोसहोवपासं पट्टवइंसु, गते से भावुजोए दव्वुजोवंकरिस्सामो।
-कप्प० सू १२७/पृ० ४२ जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर ने सर्व दुःखों का अंत किया, उसी रात्रि में काशी देश के मल्लकी वंश के नव गण राजा और कोशल देश के लिच्छवी वंश के अन्य नव गण राजा-कुल अठारह गण राजाओं ने अमावस्या के दिन वहां अष्ट प्रहरी पौषधोपवास किया । उन्होंने विचार किया भावोद्योत-ज्ञान रूप प्रकाश चला गया-फिर भी द्रव्योद्योतदीपक का प्रकाश करना चाहिए ।
(8) भगवान महावीर के परिनिर्वाण के बाद कुंथु आदि जीवों की समुत्पत्ति होने से साधु-साध्वियों का भत्त-प्रत्याख्यान
जं रयणि चणं समणे भगवं महावीरे कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं रयणिं च णं कुंथू अणुद्धरी नामं समुप्पन्ना, जा ठिया अचलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निम्गंथीण य नो चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जा अठिया चलमाणा छउमत्थाणं निग्गंथाणं निग्गंथीणं य चक्खुफासं हव्वमागच्छइ, जं पासित्ता बहहिं निग्गंथेहिं निग्गंथीहि य भत्ताई पञ्चक्खायाई ॥१३१॥ से किमाष्टु भंते ! ? अजप्पभिई दुराराहए संजमे भविस्सइ ॥१३२॥
-कप्प० सू १३१-१३२/पृ० ४३ जिस रात्रि में श्रमण भगवान महाबीर ने सर्व दुःखों का अंत किया-उस रात्रि में कंथ नाम के जीवों की उत्पत्ति हुई । वे जीव स्थिर अचलमान थे, उन्हें छद्मस्थ निर्ग्रन्थ--निर्यन्थियों को आंख से चलती हुई नहीं दिखाई देती थी। कदाचित् चलती हो तो उन्हें छद्मस्थ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियाँ नहीं देख सकते थे। इस प्रकार के जीवों को देखकर बहुत से निर्ग्रन्थनिर्ग्रन्थियों ने अनशन व्रत स्वीकार किया।
आज से संयम का पालन करना दुराध्य होगा-अर्थात् संयम का पालन करना कठिन होगा-अतः यह सूचना अनशन सूचित करती है । (ड) तीर्थ कब तक चलेगा
जंबुद्दीवे गंभंते। दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवाणुप्पियाणं केवतियं कालं तित्थे अणुसजिस्सति ?
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