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( २३ ) जिनवर ( राग-द्वेष रहित व्यक्तियों में श्रेष्ठ ) के वचनों से उपदिष्ट मार्ग के द्वारा, वे श्रेष्ठ श्रमण सार्थवाह सिद्धिरूप महापट्टण ( = बड़े बंदरगाह ) की ओर मुख रखकर सीधी गति से संयमपोत के द्वारा जा रहे थे। (अ) सुसुइ सुसंभास-सुपण्ह-सासा ।
—ओव० सू० ४६
वे सम्यक् श्रत, सुसंभाषण, सुप्रश्न और शोभन आशावाले थे अथवा सम्यगश्रुत, सुसंभाषण और सुप्रश्न के द्वारा शिक्षा के दाता थे।
(ट) गामे गामे एगराय, नगरे नगरे पंचरायं दूइज्जंता जिइंदिया णिब्भया गयभया, सचित्ताचित्त-मीसिएसु दव्वेसु विरागयं गया संजया विरया-मुत्ता लहुया णिरवकंखा साहू णिहुया चरंति धम्म ।
-ओव० सू० ४६ वे अनगर, गाँवों में एक रात्रि और नगरों में पाँच रात्रि तक निवास करते हुए, जितेन्द्रिय, निर्भय, गत भय होकर, सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों में वैराग्यवान्, संयत, विरत, मुक्त, लघुक, निरवकांक्ष, साधु और निभृत (=प्रशांत वृत्ति वाले होकर, धर्मका आचरण करते थे। अनगारों के विशेष गुण(ठ) संसार-भउन्विग्गाभीया ।
---ओव० सू० ४६ वे अनगार संसार के भय से उद्विग्न और डरे हुए थे।
चउरंत-महंत-मणवदग्गं-रुहं संसारसागरं । भीमदरिसणिज्जं तरंति धीर-धणियं-निप्पकंपेण तुरियं अवलं-संवर-वेरग्ग-तुंग-कुवयसुसंपउत्तेणं णाणसित-विमल-मूसिएणं समत्त-विसुद्ध-लद्ध-णिजामएणं धीरा संजमपोएणं सीलकलिया।
-बोव० ४६ वे धीर ओर शीलवान अनगार, भयंकर दिखाई देने वाले संसारसागर को संयम रूपी जहाज से शीघ्रगति से पार कर रहे थे ।
वह संयमयान धैर्यरूपी रस्सी के बंधन से बिलकुल निष्कंप बना हुआ था। ___ संवर (हिंसादि से विरति ) और वैराग्य रूप ( कषायनिग्रह ) ऊँचा कूपक ( मस्तुल, स्तंभ विशेष) उस संयमपोत में सुन्दर ढंग से जुड़ा हुआ था ।
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