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(ख) एदस्स भरहखेत्तस्स ओसप्पिणीए वउत्थे दुस्सम सुसमकाले णवहि दिवसेहि छहमासेहि य अहिय तैंतीसवासावसेसे तित्थोप्पत्ति जादा |
- कसापा० भाग १ / पृ० ७४ - जयधवला टीका
इस भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा- सुषमा काल में नौ दिन और छह मास से अधिक तेतीस वर्ष अवशेष रहने पर धर्मतीर्थं की उत्पत्ति हुई ।
हरिवंश पुराणकार आचार्य जिनसेन ने श्रावण कृष्णा प्रतिपदा के दिन - प्रातःकाल अभिजित नक्षत्र के समय भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि प्रगट होने का उल्लेख किया है। यथा
(ग) स दिव्यध्वनिना विश्वसंशयच्छेदिना जिनः । दुन्दुभिध्वनिधीरेण योजनानन्तरयायिना ॥ श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभुः । प्रतिपद्यत्नि पूर्वान्हे शासनार्थमुदाहरत् ॥
- हरिवंश पुराण, सर्ग २ - श्लो ६०/६१
इस प्रकार दिगम्बर मतानुसार भगवान् महावीर को केवल ज्ञान उत्पन्न होने के छयासठ दिन बाद - भावण कृष्णा प्रतिपदा को तीर्थोत्पत्ति हुईं।
• १६ श्रमण भगवान् महावीर की जीवन-झांकी
.१ से जहाणामए अजो ! अहं तीसं वासाई अगाश्वासमज्झे वसित्ता मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पवइए, दुवालस संवच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहि पक्खेहिं ऊणगाई तीसं बासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाईं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावन्तरिवालाई सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं बुज्झिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्लं ।
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- ठाण० स्था ६ / सू ६२ / पृ० ८७१
मुंड होकर, अगार से अनगार अवस्था छद्मस्थ पर्याय का पालन किया ।
आर्यों! मैं तीस वर्ष तक गृहस्थावास में रहकर, में प्रत्रजित हुआ । मैंने बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक तीस वर्षों में तेरह पक्ष कम काल तक केवली - पर्याय का पालन किया। इस प्रकार बयालीस वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर, बहत्तर वर्ष की पूर्णायु पालक कर, सिद्ध में बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त होऊँगा और समस्त दुःखों का अन्त करूँगा ।
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