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( ४२ ) (ख) समणस्स भगवओ महावीरस्स सुलसारेवईपामोक्खाणं समणोवासियाणं
तिण्णि सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया होत्था।
-कप्प० सू० १३६/पृ० ४४ (ग) श्राविकाणां तु त्रिलक्षी साष्टादशसहस्रिका।
–त्रिशलाका० पर्व० १०/सर्ग १२/श्लो० ४३६ भगवान के सुलसा, रेवती प्रमुख ३१८००० श्राविका थी। (घ) लक्खाई तिण्णि जहिं सावइहिं ।
-वीरजि० संधि २/ कह ८ भगवान के तीन लाख भाविकाएँ थीं। (च) त्रिलक्षश्राविकाश्चास्यार्चयन्त्यविसरोरुहौ ॥ २१४ ।।
- वीरवर्धच० अघि १६ (छ) श्रावका लक्षमेकं तु त्रिगुणाः श्राविकास्ततः ।
- उत्तपु० पर्व ७४/श्लो० ३७६ (ज) पणचउतियलक्खाई पण्णविदाकृतित्थेसुं। पुह पुह सावगिसंखा सव्वा छण्णउदिलक्खाई ॥
-तिलोप० अधि ४/गा ११८३
आठ आठ तीर्थंकरों के तीर्थों में श्राविकाओं की संख्या पृथक्-पृथक् क्रम से पाँच लाख, चार लाख और तीन लाख थी। अतः भगवान महावीर के तीर्थ में तीन लाख भाविकायें थीं।
२१. तिथंच मी श्रावक थे। (क) तिर्यञ्चः सिंहसर्पाद्याः शान्तचित्ता व्रताङ्किताः । संख्याता भक्तिका वीरं श्रयन्ते भवभीरवः ।।
-वीरवर्धच० अघि १६/श्लो २१६ सिंह-सादि शांतचित्त, व्रतयुक्त, भक्तिमान और भवचीरु संख्यात तियंत्रों ने वीर भगवान का आश्रय लिया था।
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