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( ५१ )
श्रमणोपासकों के प्रश्न को सुनकर उन स्थविर भगवंतों में से कालिक पुत्र नामक स्थविर ने इस प्रकार उत्तर दिया - हे आर्यों! पूर्व तप के कारण देवता देवलोक में उत्पन्न होते है ।
उनमें से मेहिल (मेधिल ) नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा - हे आर्यो ! पूर्व संयम के कारण देवता देवलोक में उत्पन्न होते हैं ।
उनमें से आनंद रक्षित नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा - हे आर्यों ! कर्मिता के कारण अर्थात पूर्व कर्मों के कारण देवता, देवलोक में उत्पन्न होते हैं ।
उनमें से काश्यप नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा कि हे आर्यों । कारण अर्थात् द्रव्यादि में रागभाव के कारण देवता देवलोक में उत्पन्न होते हैं ।
. २. सर्वज्ञ अवस्था में
(ख) पार्श्वपत्य अणगारों से संपर्क :
तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिजा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी - से नूणं भंते ! असंखेज्जे लोए, अनंता राई दिया उपज्जिं सु वा उप्पज्जेति वा, उप्पजिस्संति वा ? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छस्संति वा ? परित्ता राई दिया उप्पज्जिसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पजिसंति वा ? हंता अजो ? असंखेज्जे लोए अनंता राईदिया तंचेव ।
सेकेणं जाव विगच्छिस्संति वा ?
से नूणं भे अजो ! पासेणं अरहया पुरिसादाणिएणं सासए लोए बुइएअणादीप अणवदग्गे परिते परिवुडे हेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झे संखित्त, उप्पि चिसाले, अहे पलियं कसं ठिए, मज्झे वरवइरविग्गहिए, उपि उद्धमुगाकार संठिए ।
तेसिं च णं सासयसि लोगंसि अणादियंसि अणवदग्गंसि परितसि परिवुडंसि हेट्ठा चिच्छण्णंसि, मज्झे संखित्तंसि, उप्पि विसालंसि, अहे पलियंकसंठियंसि, मज्झे वरवरविग्गहियंसि, उप्पिउद्धमुगाकार संठियंसि अनंताजीवघणा उपजित्ता - उप्पजित्ता निलीयंति, परित्ता जीवघणा उप्पजित्ता - उप्पजित्ता निलीयंति ।
संगीपन के
से भूप उपपणे विपरिणए, अजीवेहिं लोक्कर पलोक्कर, जे लोक्कर से लोए ?
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