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संख्यात्काल रूप तीसरे आरे के अंत में भगवान ऋषभदेव स्वामी का जन्म और मोक्ष हुआ। चौथे आरे के मध्य में श्री अजितनाथ स्वामी का जन्म और मोक्ष हुआ। चौथे आरे के पिछले आधे भाग में श्री संभवनाथ स्वामी से श्री कंथुनाथ स्वामी का जन्म और मोक्ष हुए। चौथे आरे के अंतिम भाग में श्री अरनाथ स्वामी से श्री वीरस्वामी तक सात तीर्थंकरों का जन्म और मोक्ष हुआ । ३५. भव
वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकर भगवान को सम्यक्त्व प्राप्त होने के बाद जितने भव के पश्चात् वे मोक्ष पधारे उनकी भवसंख्या इस प्रकार है।
१ ऋषभदेव की भव संख्या १३, शांतिनाथ स्वामी की १२, अरिष्टनेमि स्वामी की E, पार्श्वनाथ स्वामी की १०, महावीर स्वामी की २७ और शेष तीर्थंकरों की भव संख्या ३ है। ,३६. वर्धमान तीर्थकर के २७ बोलो का यंत्र - १. च्यवन तिथि
आषाढ शुक्ला षष्ठी २. विमान
प्राणत देवलोक ३. जन्म नगरी
कुण्डपुर ४. जन्म तिथि
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी ५. माता का नाम
নিহালা ६. पिता का नाम
सिद्धार्थ ७. लांछन
सिंह ८. शरीरमानं ( उत्सेधांगुल से ) सात हाथ प्रयाण ६. कंवर पद
३० वर्ष १०. राज्य-काल ११, दीक्षा-तिथि
मिगसर कृष्णा १० १२. पारणे का स्थान ( यहाँ दीक्षा के बाद
का प्रथम पारणा लिया गया है । ) कोल्लाग सन्निवेश १३. दाता का नाम
बहुल ब्राह्मण १४. छद्मस्थ काल
१२ वर्ष ६ मास १५ दिन १५. ज्ञानोत्पत्ति तिथि
वैशाख शुक्ल १० १६. गणधर संख्या
ग्यारह १७. प्रथम गणधर
इन्द्रभूति १८. साधु संख्या
१४ हजार १६. साध्वी संख्या २०. प्रथम आर्या
चन्दना २१. श्रावक संख्या
१५६०००
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