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( २८ ) श्रमण भगवान महावीर के ग्यारह गणधर और नव गण थे। प्रत्येक गणधर की भिन्नभिन्न वाचना, आचार और क्रिया थी।
भगवान के परिनिर्वाण के समय-नौ गणधर नहीं थे। (ख) यातेषु गौतमसुधर्ममुनीन्द्रवज ।
मोक्षश्रियं गणधरेषु नवस्वथोच्चः॥ स्वामी सुरासुरनभश्चरसेव्यमान । पादो जगाम भगवाम्नगरीमपापाम् ॥
-त्रिशलाका अ० पर्व १० ( सर्ग १२ ) श्लो ४४०
जब भगवान अंतिम समय में अपापा नगरी पधारे, उस समय गौतम और सुधर्म गणधर थे लेकिन अन्य नव गणधरों ने मोक्ष प्राप्त कर लिया था ।
.१.१० भगवान की शासन संपदा सौधर्म से ग्रेवेयक तक–देवों में उत्पन्न साधुओं की संख्या ।
सौहम्मादियउवरिमगेवज्जा जाव उवगदा सग्गं ।
उसहादीणं सिस्सा ताण पमाणं परवेमो ॥ १२३३ इगिसय तिण्णिसहस्सा णवसयअब्भहियदोससहस्साणि । णवसयणवयसहस्सा णवसयसंजुत्तसगसहस्साणि ॥१२३४ ॥ बाससया सहस्सं अट्ठसयाणि जहा कमसो ॥१२३७ ।।
-तिलोप० अधि ४/गा १२३३, ३४, ३७ .' ऋषभादिक तीर्थंकरों के जो शिष्य सौधर्म से लेकर ऊर्ध्व अवयक तक स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं, उनके प्रमाण का प्ररूपण किया जाता है ।
भगवान महावीर के ८०० शिष्य सौधर्मादिक देवलोकों में उत्पन्न हुए । .१.११ विशिष्ट-साधु संख्या घत्ता-मोहें लोहें चत्तउ तिहिं सएहिं संजुत्तउ । एक्कु सहसु संभुर उ खम-दम-भूसिय-रूपउ॥
-वीरजि० संधि शकड ७ भगवान के संघ में एक हजार तीन सौ ऐसे मुनि भी थे जो मोह और लोभ के त्यागी तथा क्षमा और दम आदि गुणों से भूषित थे ।
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