________________
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
Jan Education International
आपके दर्शन के साथ प्रवचन सुनने का सुखवसर भी मुझे कई बार मिला है। ग्रापके प्रवचन सरल, सुबोध एवं सरल भाषा में होते हैं । ग्रपनी पीयूष वाणी से जहाँ आप श्रोताओं को मुग्ध कर देती हैं, वहाँ आपकी शिष्याएँ भी प्रतिभासम्पन्न एवं सेवाभावी हैं, जिससे जैनशासन में श्रीवृद्धि हो रही है।
आप सागर के समान शांत एवं गंभीर हैं, जिस पर परिस्थितियों के ज्वारभाटे का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और जो कभी भी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करता। सागर में इतनी विशालता होती है कि उसमें अनेक नदियों का पानी समाहित हो जाता है, वैसे ही आपके प्रवचनों में अनेक धर्मों के सद्गुण समाहित हैं। यही कारण है कि जैन-अर्जन सभी आपके विचारों से प्रभावित होते हैं।
श्राप दीक्षा के स्वर्णजयन्ती वर्ष में प्रवेश कर रहे है। समय के साथ-साथ आपका चिन्तन-मनन अधिक परिपक्व हो गया है और प्रापकी तपस्या भी प्रखरतर होती जा रही है। श्रापका पावन एवं यशस्वी जीवन संघ और समाज के लिए प्रेरणा का प्रक्षय स्रोत है ।
अंत में महासती 'अर्चनाजी' के विषय में इतना ही कहूँगी कि उनके महान गुणों को अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, सौरभ की तरह केवल अनुभूत किया जा सकता है । मैं आपका अभिनन्दन करती हुई शासनदेव से प्रार्थना करती हूँ कि आप दीर्घायु हों और प्रापका भाशीर्वाद सभी के हृदय में ध्यान घोर तपश्चर्या का संचार करता रहे। पुनः
आप
जीओ हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार ॥
मंगल कामना कंवरलाल बेताला, गोहाटी
यह संसार परिवर्तनशील है। अनादिकाल से पदार्थों का स्वरूप बदलता रहता है। वहीं व्यक्ति बुद्धिमान् है, जो संसार की बदलती हुई स्थिति में अपने बाप को बदले और ऐसा बदले कि फिर बार-बार बदलने की जरूरत ही न पड़े। ऐसी महान साधना महान् आत्मायें ही कर सकती हैं।
समय-समय पर इस धरा धाम पर पुण्यात्माओं का प्रादुर्भाव होता रहा और वे अपने तपःपूत जीवन से जगत् के अज्ञानान्धकार में भटकते हुए प्राणियों को सुमार्ग बताते रहे हैं। उन्हीं की श्रृंखला में हमारे द्वेय पूज्य सद्गुरुणीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" का नाम गौरव के साथ लिया जाता है ।
पूज्य गुरुदेव स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म. सा. एवं श्रमण संघीय युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. "मधुकर" के स्वर्गवास के पश्चात् हमें महासतीजी द्वारा जो दिशाबोध मिलता है, उससे हम पूज्य गुरुदेव के अपूर्ण कार्यों को पूर्ण करने में सफलता की ओर अग्रसर
अर्चनार्चन / २४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org