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शिवमंदिर नगर में आया । वहाँ हाथी जिस प्रकार कमल के खंड कर उन्मूलन करता है, उसी प्रकार शूर राजा के शूरवीर पुत्र ने लीलामात्र में कमल का उन्मूलन कर दिया । पुत्र का पराभव हुआ जानकर अनंगसिंह राजा सिंह के समान क्रोधित हुआ और सिंहनाद कर सैन्य को लेकर दौड़ा चला आया । विद्याबल से, सैन्य बल से और भुजाबल से उन दोनों के बीच देवताओं को भी भयंकर लगे, ऐसा महासंग्राम होने लगा । अंत में अनंगसिंह को चित्रगति शत्रु को जीतना अशक्य जानकर उसको जीतने की इच्छा से देवताओं द्वारा प्रदत्त क्रमागत खड्गरत्न का स्मरण किया। सैंकड़ों ज्वालाओं से दुरालोकर (कठिनाई से देखा जाय ) और शत्रुओं के लिए यमराज (काल) जैसा वह खड्गरत्न क्षणभर में उसके हाथ में आ गया। वह खड्ग हाथ में लेकर अनंगसिंह बोला, 'अरे बालक! अभी तू यहाँ से चला जा, नहीं तो मेरे सन्मुख रहा तो तेरा मस्तक कमलनाल की तरह इस खड्ग से छेद दूंगा । चित्रगति आश्चर्य से बोला, 'अरे मूढ़ ! मुझे तो अभी तू कुछ और ही हो गया है, ऐसा लगता है, क्योंकि एक लोहखंड के बल से तू इतनी गर्जना कर रहा हैं । परन्तु अपने बल से रहित ऐसे तुझे धिक्कार है।' इस प्रकार कहकर चित्रगति ने विद्या से सर्वत्र अंधकार की विकुर्वणा की । जिससे शत्रुओं को अपने सामने कुछ भी दिखाई नहीं देने लगा । एवं खड्ग झपट लिया और सुमित्र की बहन को लेकर शीघ्र ही वहाँ से चल दिया। क्षणभर में तो अंधकार दूर होकर पुनः प्रकाश हो गया। तब अनंगसिंह ने देखा तो हाथ में ख्ग दिखाई नहीं दिया और सामने शत्रु भी दिखाई नहीं दिया । क्षणभर तो वह उसके लिए व्यथित हुआ परन्तु बाद में ज्ञानी के वचन उसे स्मरण हो आए कि मेरे खड्ग का हरण करने वाला मेरा जमाता होगा, इससे वह खुश हो गया । परंतु अब मैं उसे पहचानूंगा कैसे ? ऐसे सोचते-सोचते उसे ख्याल आया कि सिद्धायतन में वंदना करते समय उसके ऊपर देवता पुष्पवृष्टि करेंगे, उससे उसे पहचान लूंगा। इस प्रकार ज्ञानीपुरुष ने कहा था, अतः चिन्ता का कोई कारण नहीं है । इस प्रकार विचार करके अपने घर चला गया।
(गा. 197 से 212)
बुद्धिमान् चित्रगति कृतार्थ होकर अखंड शीलवती सुमित्र की बहन को लेकर सुमित्र के पास आया और उसे सुमित्र को सौंप दी। सुमित्र राजा पहले से ही अपने विवेक से संसार से उद्विग्न था, उस पर बहन के अपहरण के पश्चात्
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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