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में उत्पन्न होगी। इस प्रकार तुम्हारे सम्यग्दृष्टि पुत्र को जहर देने के पाप से वह संसार में परिभ्रमण करती हुई अनंत दुःख का अनुभव करेगी।
(गा. 175 से 187) सुग्रीव राजा ने कहा- 'हे भगवन! उस स्त्री ने जिसके लिए ऐसा कृत्य किया, उसका यह पुत्र तो यहाँ है और वह नरक में गई है। अतः राग द्वेषादि का रूप महादारुण है। ऐसे इस संसार को धिक्कार है अब तो मैं ऐसे संसार को त्यागकर दीक्षा ग्रहण करुंगा। उस समय उनको प्रणाम करके सुमित्र ने इस प्रकार कहा कि, 'हे पिताश्री! मेरी माता के इस प्रकार के कर्मबंध के कारण ऐसा रूप मुझे धिक्कार है। अतः हे स्वामिन्! मुझे आज्ञा दो कि जिससे मै शीघ्र ही दीक्षा ग्रहण करूँ, क्योंकि अतिदारुण इस संसार में रहने की कौन इच्छा करे?' इस प्रकार कहते हुए पुत्र को आज्ञा से निवार कर अर्थात् मना करके सुग्रीव राजा ने उसका राज्याभिषेक किया, और स्वयं ने व्रत ग्रहण किया। तत्पश्चात् सुग्रीव राजर्षि ने उन केवली के साथ विहार किया। सुमित्र चित्रगति के साथ अपने नगर में आया।
(गा. 188 से 193) अपनी अपरमाता भद्रा के पुत्र पद्म को उसने कितने गाँव दिये, परंतु वह दुर्विनीत उससे संतुष्ट न होकर वहाँ से अन्यत्र चला गया। चित्रगति बड़ी कठिनाई से सुमित्र राजा की आज्ञा लेकर अपने उत्कंठित माता पिता को मिलने अपने नगर में गया। वहाँ देवपूजा, गुरु की उपासना, तप, स्वाध्याय और संयमादिक में निरन्तर तत्पर रहने से अपने माता-पिता को अत्यन्त सुखदायक हो गया।
(गा. 194 से 196) अन्यदा नामक सुमित्र की एक बहन जिसकी कलिंग देश के राजा के साथ शादी की थी, उसका अनंगसिंह राजा के पुत्र और रत्नवती के भाई कमल ने अपहरण कर लिया। ‘अपनी बहन का अपहरण होने से सुमित्र शोकमग्न है' ये समाचार किसी खेचर के मुख से उसके मित्र चित्रगति ने सुना तो कहा कि मैं तुम्हारी बहन को थोड़े समय में ही ढूंढ लाऊँगा, इस प्रकार खेचरों के द्वारा ही सुमित्र को धैर्य बंधाकर चित्रगति उसकी खोज में तत्पर हुआ। पश्चात् कमल ने उसका हरण किया, ऐसे समाचार जानकर चित्रगति सर्व सैन्य को लेकर
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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