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तस्वभावना
भावार्थ-यहां यह दिखलाया है कि जिनको संसार-समुद्र तिरने में बहुत थोड़ी देर है अर्थात् जो दीर्घकाल तक संसार में फसे न रहेंगे और शोघ्र ही मुक्ति को पाएँगे उन महात्माओं को ही वे सब कारण व साधन सहज में मिल जाते हैं, जो कर्मो को काटने वाले हैं । वास्तव में मुक्ति का साक्षात् साधन निग्रंथ पद है । अर्थात सर्व परिग्रह रहित साधुपद है । जिसका बाहरी भेष नग्न दिगम्बर है, मात्र पोछो व कमंडल और होता है, जिससे जीवदया पाली जाये और शौच का काम लिया जावे । ये साधु शरीरसे ममता के त्यागी होते हैं, इसीलिए अपने केसों को हाथ से घास के समान उखाड़ कर फेंक देते हैं। तथा ये अहिंसावत के पूर्ण पालक होते हैं इसीलिए चार हाय प्राशक भूमि आगे देखकर दिन में चलते हैं । रात्रि को एक स्थान में ठहरते हैं । जिनके वचन बड़े मिष्ट, अल्प व शास्त्रोक्त होते हैं। जो शुद्ध भोजन समताभाव से गृहस्थों को बिना किसी प्रकार का कष्ट दिये हुए जो उन्होंने अपने कुटुम्बक हेतु बनाया है उसीका कुछ भाम भक्तिपूर्वक दिए जाने पर लेते हैं । जो निजंतु स्थानों में मल मूत्र करते हैं व जो किसी वस्तु को देख शोधकर उठाते घरते हैं। ऐसे पांच समिति के पालक हैं, जो बिना दिए हुए अपने से कभी कोई वस्तु यहां तक कि पानी व फलफुल भी नहीं लेते। जो सत्य वचनों के सिवाय कभी भी हिंसाकारी असत्य नहीं कहते । जो परम शुद्ध ब्रह्मचर्य की दृष्टि से देखते हुए कामभाव को अपने मन में जगह नहीं देते । जो किसी क्षेत्र व रुपये पैसे पर व किसी अन्य चेतन अचेतन पदार्थ पर ममत्व भाव नहीं रखते । ऐसे पांच अहिंसादि महावतों के पालक हैं।