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दिनो आजकल के क्षिण देशों तथा सीलोन मे विद्याधर राजापो का राज्य था, जिनके पास आकाशगामी विमान थे। __वाल्मीकीय रामायण जैसे ग्रन्थो मे जहा किष्किन्धा के राजा बाली तथा सुग्रीव को पशु योनि का बन्दर माना है, वहा जैन ग्रन्थो मे उस समय भी वहा विद्याधर जातियो का निवास मानकर उनको विद्याधर ही माना है। इसीलिये जहा वाल्मीकीय रामायण मे हनूमान् जी समुद्र को कूद कर लंका जाते है वहा जैन रामायण के अनुसार वह विमान पर बैठ कर लका जाते है।
फिर भी वाल्मीकीय रामायरंण मे ऐसे स्थलो की कमी नहीं है, जिनसे हनूमान् जी के पास आकाशगमन विद्या का होना प्रमाणित होता है। उनका जन्म लेते ही सूर्य की प्रोर को उडना, उनका अयोध्या के ऊपर आकाश मार्ग से द्रोणागिरि पर्वत के शिखर को लाना-ऐसी घटनाएँ है, जिनसे सिद्ध होता है कि हनुमान जी मन की गति से प्राकाश में भ्रमण करते थे। किन्तु वाल्मीकीय रामायण मे जहा लका जाते समय उनके समुद्र को कूदने का वर्णन करके उसकी आकाशगामिनी विद्या के महत्त्व को घटा दिया है वहा द्रोणागिरि पर्वत से सजीवनी बूटी लाते समय वह इसकी कोई व्याख्या नहीं दे सके है। इस स्थल पर यह बात स्पष्ट हो गई है कि हनूमान् जी के पास आकाशगामिनी विद्या थी।
इसी प्रकार सुग्रीव के पास भी आकाशगामिनी विद्या होने के प्रमाण मिलते है। कुम्भकर्ण जब सुग्रीव को अपनी बगल मे दाब कर ले चला.तो सुग्रीव उसकी बगल मे नोच-खसोट कर उससे निकल आए और उसके नाक-कान काट कर आकाश-मार्ग से उड कर उसकी पहुँच से निकल भा।
इस प्रकार जैन ग्रन्थो ने जो दक्षिण मे रामायण से भी प्राचीन समय से सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार के समय तक विद्याधर जातियो का अस्तित्व माना है वाल्मीकीय रामायण से उनको किसी अश तक ऐसा समर्थन मिलता है कि उसकी दूसरी व्याख्या की ही नही जा सकती। ____ इसीलिये सिंहल के राजा रत्नचूल द्वारा केरल-नरेश राजा मृगांक के ऊपर चढाई करने पर रत्नवूल ने विमान पर व्योमगति विद्याधर को राजगह भेज कर सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार को इस चढाई का समाचार उसी दिन भिजवा
दिया और वमान की सहायताले जम्बू स्वामी उसी दिन राजा मृगाक की