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श्रेणिक बिम्बसार में है । मगध की सेना को वहा पहुँचते-पहुँचते भी महीनो लग जावेगे, तब तक 'युद्ध को किसी प्रकार टाला जा सकता है ?"
विद्याधर के यह वचन सुनकर जम्बूकुमार बोले
"हे विद्याधर ! आपकी बाही ठीक है। आपकी यह बात भी ठीक है कि हमारे पास सैनिक विमान नही है। किन्तु आपको हमारा बल जाने बिना उठकर एक दम नही चले जाना चाहिये। आप थोड़ी देर ठहर कर जरा हमको सोच लेने का अवसर दें।"
यह सुनकर व्योमगति बोला"अच्छा कुमार, आप क्षण-एक विचार कर लें, मै ठहरा हुआ हूँ।" व्योमगति के यह कहने पर जम्बू कुमार ने सम्राट् से कहा
"हे स्वामी । मेरी समझ में तो यह काम उतना कठिन नही है, जितना उसको आर्य व्योमगति ने बतलाया है। यदि आपकी अनुमति हो तो मैं इस विषय में अपना विचार आपके सम्मुख उपस्थित करू।"
तब सम्राट् बोले"तुम अवश्य कहो कुमार ! हम तुम्हारा विचार जानने को उत्सुक है।" इस पर जम्बकुमार बोले
"मेरे विचार से तो मुझे अकेले ही प्रथम मार्य व्योमगति के साथ उनके विमान पर बैठ कर ' केरल चला जाना चाहिये और पीछे से सम्राट् अपनी चतुरंगिणी सेना लेकर यथाशक्ति शीघ्र केरल पात्रा के लिये प्रस्थान करें।"
सम्राट-किन्तु तुम अकेले वहां क्या करोगे कुमार ? फिर सम्राट् ने वर्षकार की ओर देखकर उससे पूछा
"क्यों वर्षकार जी! इस विषय में तुम्हारी क्या सम्मति है ?" ''इस पर वर्षकार ने उत्तर दिया
"देव ! जम्बूकुमार के कथन में मुझे तो कोई बाधा दिखलाई नही देती। बह बल, विद्या और बुद्धि तीनो से भरपूर हैं। जिस प्रकार अङ्गद तथा
मान नेशन की सेना अकेले ही जाकर, प्रलय मचा दी थी, इसी प्रकार