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सिंहल-नरेश से युद्ध ऊ चे टीले पर जा चढे । उन्होने अपने धनुप को उठाकर शीघ्रतापूर्वक ऐसे पैने बाण चालाये कि पचास के पचास सैनिको को बात की बात मे मार दिया। यह दृश्य देखकर रेजा रत्नचूल बोला___ "यह बालक देखने में ही बालक है, किन्तु युद्धस्थल में तो यह काल के समान प्रहार करता है । इसलिये औठ सहस्त्र सैनिको की पूरी सेना इसके ऊपर धावा करे।"
राजा रत्नचूल की यह प्राज्ञ! पाकर आठ सहस्र योद्धा कुन्त आदि शस्त्र हाथ में लेकर जकुमार को मारने का उद्योग करने लगे। किन्तु कुमार के बांगो की मार के कारण कोई भी उनके पास तक न पा सका।
इस प्रकार एक भीषण युद्ध प्रारंभ हो गया। एक ओर कुमार जम्बू स्वामी अकेले थे और दूसरी ओर अनेक योद्धा थे। कुमार ने अपने तीक्ष्ण बाणों से उनमे से अनेक को मार डाला।
व्योमगति विद्याधर ने जो इस प्रकार कुमार को लडते देखा तो उनको विमान पर प्रा जाने को कहा। किन्तु कुमार ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और उसी भयकरता से युद्ध करते रहे । इस समय बाण चलाने मे कुमार का हस्तसाधव देखने योग्य था । वह कब बाण निकालते, कब उसको धनुष पर रखते, कब प्रत्यचा खेचते और कब उसको चलाते थे यह किसी को दिखलाई नही देता था। उस समय जल, स्थल तथा आकाश में सब ओर उन्ही के बाण छाये हुए थे। उनके बाणो से रत्नचूल के योद्धाओ के शरीर के अग ऐसे उड रहे थे, जैसे धुनिये के धनुष के धुनने से रुई उडती है। " ___ उधर कुमार पर योद्धानो के शस्त्र कोई नही पड पाते थे। उनकी दृष्टि ऐसी पैनी थी कि वह अपनी ओर आने वाले प्रत्येक शस्त्र को दूर से ही देखकर अपने बाणो से उसकेटुकड़े २ कर देने थे। उनके अक्षय तूणीर से बाणों को अविरल धारा निकल-निकल कर कम होने का तनिक भी नाम नहीं लेती थी। कुमार ने ऐसी सावधानी तथा कुशलता से युद्ध किया कि रत्नचूल के योद्धा उनके सामने न ठहर सके। जिस प्रकार एक ही सूर्य सारे अधकार को नाश कर देता है, उसी
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