Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

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Page 288
________________ Enarxnraa श्रेणिक बिम्बसारं प्रकार उस अकेले कुमार ने सारे शत्रु-दल को नष्ट कर दिया। इसी बीच किसी गुप्तचर ने जाकर राजा मृगाक से कहा "हे देव ! आपके पुण्य के उदय से कोई महापुरुष पाया है, जो शत्रुसेना को इस प्रकार नष्ट कर रहा है, जिस प्रकार दावानल वन के वृक्षो को नष्ट करता है / वह बडी चतुराई से युद्ध कर रहा है / न जाने वह आपका इस जन्म का कोई मित्र है, अथवा पूर्वजन्म का कोई बन्धु है, या राजा श्रेणिक ने किसी वीर योद्धा को आपकी सहायता के लिये भेजा है।" ___ राजा मृगाक इस समाचार को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। उनके शरीर में आनन्द के मारे रोमाच हो पाया। अब राजा मृगाक भी अपनी समस्त सेना को तैयार करके युद्ध के लिये अपने दुर्ग से बाहिर निकला। उसकी सेना के बाजो की ध्वनि सुनकर रत्नचूल भी सावधान हो गया। वह क्रोधाग्नि से जलता हुआ युद्ध करने के लिये राजा मृगाक के सामने आया। इस प्रकार दोनो भोर की सेनाप्रो मे भयकर युद्ध होने लगा। अब तो हाथियो से हाथी, घोडो से घोडे, रथो से रथ, तथा विद्याधरो से विद्याधर भिडकर अत्यन्त भयंकर युद्ध करने लगे। उस युद्ध के कारण उस समय उस युद्धस्थल मे रुधिर की धारा बह निकली। उस समय घोडों के खुरो की धूल आकाश मे छा गई, जिससे दिन मे भी अंधकार जैसा हो गया। कही योद्धा लोग एक दूसरे का नाम लेकर उनको ललकार रहे थे / रथो के चलने की, हाथियो की घटियों की, उनके चिघाडने की, धनुषो की टकार की तथा योद्धाओ की गर्जना की महान् ध्वनि हो रही थी। इस समय तलवार, कुन्त, मुन्गर, लोहदड आदि शस्त्रो से सैकडो योद्धामो के शिर चूर्ण हो गये। कई एक की कमर टूट गई। कही योद्धा, कही हाथी तथा कही रथ टूटे पड़े थे। आकाश में तलवार आदि चमकीले शस्त्रो के कारण बिजली सी चमक रही थी। उस समय ऐसा भारी युद्ध हो रहा था कि किसी को भी अपने-पराये की सुधि नही थी। कही पृथ्वी पर प्रॉते पड़ी थी, कोई बालो को फैलाये मूछित पड़ा था, कोई किसी के केशो को पकड़कर मार रहा था, कहीं शिर कट जाने

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