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चिलाती के अत्याचार "क्यों शालिभद्र | आज इतने उदास क्यो हो ?" "क्या कल के राज्यसभा के दृश्य को देखकर भी तुम प्रश्न करते हो, गुणभद्र !"
शालिभद्र-भाई सम्राट् सम्राट् है । उनके गुण-दोषो की आलोचना करना अपना कार्य नही है।
गुण-तुम भी शालिभद्र निरे बुद्धू ही रहे। क्या तुम अपने गुरु जी आचार्य कल्पक के अपमान को इस प्रकार सहन कर सकते हो ?
शालिभद्र-गुरु जी का अपमान करनेवाले का तो मै तुरन्त ही गला काट लू गा, किन्तु सम्राट् का तो हम कुछ भी नहीं बिगाड सकते ।
गुणभद्र-यह सोचना भी तुम्हारी भूल है । एक छोटी सी चीटी अपने से सहस्रो गुने हाथी को जान से मार देती है। धूल पर जब पैर रखा जाता है तो वह भी एक बार उडकर पैर रखने वाले के सिर पर सवार हो जाती है । ससार मे छोटे, बडे सब परिस्थितिवश ही बने हुए है। •परिस्थिति बदलने पर छोटा बडा हो सकता है और बड़ा छोटा हो सकता है। जो राजा अपने गुरुतुल्य महामात्य का भरी राजसभा मे अपमान कर सकता है वह निश्चय से विनाश के पथ पर अग्रसर हो रहा है। अब तुम सम्राट् चिलाती के राज्य की समाप्ति ही समझो।
शालिभद्र-क्या गुरु जी के भी वही विचार होगे जो तुम्हारे है । तभी वहा पर एक तीसरे युवक ने आकर कहा
"उनके विचार यदि ऐसे नही होगे तो उनको अपने विचार बदलने को विवश होना पडेगा और यदि वे अपने यह विचार नहीं बदलेगे तो भी उनका यह पुत्र वर्षकार अपने पिता का इस प्रकार भरी सभा मे अपमान सहन करने को तैयार नही है । चिलाती के अत्याचार अब सीमा को अतिक्रमण कर चुके है । वह बडो का मान नहीं करता और उनसे अपमानपूर्ण व्यवहार करता है।
गुणभद्र-इतना ही नहीं, उसके बाचरण भी अत्यन्त निन्दित है । किसी