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बिम्बसार द्वारा भगवान् के दर्शन , है। कृपा करके मुझे अनुमति दें कि मैं भगवान् महावीर स्वामी के पास शीर्थ ही मुनि-दीक्षा ग्रहण कर लू ।"
अभयकुमार, वारिषेण तथा गजकुमार की जिन-दीक्षा की प्रार्थना सुनकर राजा एकदम चक्कर में पड़ गये । उनको यह नहीं सूझा कि उनको क्या उत्तर दें। तब तक महारानी नन्दश्री ने आकर महाराज से निवेदन किया
"महाराज ! भगवान् बुद्ध का उपदेश सुनकर मैं बौद्ध अवश्य बन गई थी, किन्तु उससे मेरे आत्मा की तृप्ति नहीं हुई थी। किन्तु आज भगवान् महावीर स्वामी का उपदेश सुनकर मेरा अन्तरात्मा तृप्त हो गया। अब तो मुझको भी ससार से भय लग रहा है । कृपा कर मुझे भी महासती चन्दनबाला के चरणो मे बैठकर दीक्षा लेने की अनुमति दें।"
नन्दश्री के इन वचनो को सुनकर महारानी चेलना बोली
"बहिन नन्दश्री । तू धन्य है। तूने अपने पिता, पितामह आदि अनेक पीढियो के नाम को उज्ज्वल कर दिया । मै आजतक जैनी बनी हुई भी अभी तक दीक्षा लेने को तैयार नही हो पाई, किन्तु तू आज तक बौद्ध बनी हुई भी एकदम दीक्षा लेने को तैयार हो गई।
इसके बाद रानी चेलना अभयकुमार आदि तीनों राजकुमारों से बोली
'बेटा, अभी तो तुम्हारा बचपन है। दीक्षातो बड़ी आयु में ली जाती है। तुमको अभी से क्या जल्दी है। फिर बेटा अभयकुमार ! तुम्हारे बिना तो महाराज को राजकाज चलाना भी कठिन हो जावेगा।" ___ इस पर अभयकुमार ने उत्तर दिया
"माता ! संयम ग्रहण करने के लिये क्या बचपन तथा क्या बुढ़ापा । जब सासारिक भोगों से घृणा हो ही गई तो माता, अब हम लोगो से घर में न रहा जावेगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मेरी माता भी अपने तीनो पुत्रो का साथ देंगी। पिता जी ! अब आप हम लोगो को दीक्षा लेने की अनुमति देकर हमको अपने प्रात्मा का कल्याण करने दें।"