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बिम्बसार द्वारा भगवान् के दशन,
naamwww.rammar तथा व्यय प्रतिक्षण होता रहता है। जीव का विशेष लक्षण चेतना है यह ज्ञाता, द्रष्टा, कर्ता तथा भोक्ता है । शुद्ध निश्चय-नय से यह अपने शुभ भावो का कर्ता तथा भोक्ता है। अशुद्ध निश्चय-नय से यह राग-द्वेष आदि भावो का कर्ता तथा भोक्ता है और व्यवहार-नय से यह समस्त संसारी कार्यों का कर्ता तथा उनके फल का भोक्ता है। यह जीवात्मा न तो व्यापक है और न परिच्छिन्न ही है, वरन् यह अपने शरीर के परिमाण वाला है। यह अपने संकोच-विस्ताररूप स्वभाव के कारण दीपक के प्रकाश के समान हाथी के शरीर में उतने बडे
आकार का हो जाता है, विन्तु चीटी के शरीर में इतने छोटे आकार का बन जाता है। मोक्ष होने पर इसका आकार अपने प्रतिम शरीर से कुछ ही कम प्राय उसके बराबर रहता है। ____ "इस जीव को प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, आत्मा, अन्तरात्मा, जानी आदि नामों से पुकारा जाता है। वह संसार के जन्मो में जीता है, जीता था और जीवेगा इसलिये इसे जीव कहा जाता है । ससार से छूटकर मोक्ष होने पर भी यह सदा जीता रहता है । तब उसको सिद्ध कहते है ।" ___"जो इस जीव का घात करते है वे बड़े भारी पापी है। जीव का धात किसी भी अवस्था में किसी भी बहाने से नहीं करना चाहिये। कुछ लोगो का कहना है, यज्ञ में मारे हुए जीव सीधे स्वर्ग को जाते है। उनको चाहिये कि प्रथम वह अपने माता-पिता को मारकर उनको ही स्वर्ग पहुंचावें । संसार में 'जीवघाती महापापी' इस लोकोक्ति का घर-घर प्रचार किया जाना चाहिये । आज देश में वेदो के नाम पर जो असंख्य जीवो का यज्ञ में वध किया जा रहा है, उसका कारण धर्म नहोकर उन पुरोहितों की मास खाने की अभिलाषा है। इनका यह कहना कि यज्ञ के मांस को न खाने वाला नरक में जाता है उनकी मास-भक्षण का प्रचार करने की भावना को प्रकट करता है। संसार में मद्य, मास तथा मधु से अधिक अपवित्र खाद्य पदार्य और नहीं है। इनके अतिरिक्त बड़, पीपल पाकर, गूलर तथा अंजीर इन पांच उदुम्बर फलो का भी भक्षण नहीं करना चाहिये,पयोंकि उनमें इतनी अधिक मात्रा में जीव होते है कि उनको नेत्रो