Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ बिम्बसार द्वारा भगवान के दर्शन "भगवन् ! आपको नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो । काप दिव्यवाणी के स्वामी है तथा कामदेव को जीतने वाले है। माप पूजने योग्य है, धर्म की ध्वजा है तथा धर्म के पति है। पाप कर्मरूपी शत्रुओ का क्षय करने वाले है। आप जगत् के पालक है। अमका उपदेश सुनने के लिये समस्त देवता लालायित होकर आपके पास आये हुए हैं। आप में शुद्ध ज्ञान, दर्शन, वीर्य, चारित्र, क्षायिक सम्यक् दर्शन तथा अनन्त दान आदि लब्धियाँ है। आपके शरीर में से उज्ज्वल ज्योति निकल रही है, मानो आपका पुण्य आपका अभिषेक कर रहा है। आपकी दिव्य ध्वनि जगत् के प्राणियो के मन को पवित्र करती है। आपके ज्ञान सूर्य का प्रकाश मोहरूपी अधकार को दूर करता है। "श्री जिनेन्द्र । आपका ज्ञान अनन्त, अनुपम तथा भ्रमरहित है । आप इस समस्त विश्व को जानते हुए भी खेद का अनुभव नही करते । यह आपके अनन्त वीर्य की ही महिमा है। आपके भावो मे राग आदि की कलुषता नहीं है। पाप क्षायिक चारित्र से सुशोभित है । स्वाधीन पात्मा से उत्पन्न अतीन्द्रिय पूर्ण सुख का आप उपभोग करते है । आप अनन्त गुणो के धारक हैं। प्राज भारत में वेदों के नाम से यज्ञ में असंख्य पशुओं का वध किया जा रहा है। वे समस्त जीव आज अपनी रक्षा के लिये आपके कृपा-कटाक्ष-कोर की भोर माताभरी दृष्टि से देख रहे है। "भगवन् । मै अत्यन्त अल्पज्ञानी तथा आचरणहीन हूँ। पाप अपने निर्मल उपदेश से मेरी बुद्धि को धर्म-कार्य में लगावें, जिससे मै सदा उत्तमोत्तम धार्मिक कार्य करता हुआ अपने परलोक को सुधार सकूँ।" भगवान् महावीर की इस प्रकार स्तुति करके राजा श्रेणिक अत्यन्त विनयपूर्वक मनुष्यो के बैठने के कोठे मे जाकर बैठ गये। इसके पश्चात् राजा श्रेणिक ने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने दोनो हाथ जोड़कर एवं भक्ति से मस्तक झुका कर भगवान् से निवेदन किया 'हे भगवन् सर्वज्ञ देव । मै जानना चाहता हूँ कि धर्म का स्वरूप क्या है ? धर्म का मार्ग क्या है ? तथा उसका कैसा फल है।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288