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श्रेणिक बिम्बसार "नगर मे घोषणा कर दी जावे कि उन चौबीसवे तीर्थङ्कर भगवान् महावीर स्वामी का समवशरण विपुलाचल पर्वत पर आया हुआ है। राजा तथा रानी उनके दर्शनो को जा रहे है। जिसकी इच्छा हो उनके साथ चलकर भगवान् के दर्शन करके उनका उपदेश सुने ।" ।
यह कहकर राजा ने सभा विसर्जित करके भगवान् के दर्शनो के लिये जाने की तैयारी आरम्भ की। राजा ने जो महल में जाकर रानी चेलना को यह सम्वाद सुनाया तो वह हर्ष के उद्रेक से एकदम प्रसन्न हो गई। उसने समस्त रनवास सहित भगवान् के दर्शन के लिये जाने की एकदम तैयारी की। राजा का रथ द्वार पर खड़ा हुआ था। साथ मे जाने वाले प्रजावर्ग की भीड प्रतिक्षण बढती जाती थी। जिस समय राजा अपने रथ पर बैठकर रानियो की पालकियों के साथ आगे बढे तो जनता प्रसन्न होकर जय-जयकार करने लगी। राजगृह मे उस समय भगवान् के दर्शनो के लिये जाने का एक आन्दोलन जैसा मच गया। सभी स्त्री-पुरुष उनके दर्शन के लिये राजा श्रेणिक के साथ चले जा रहे थे।
जिस समय राजा श्रेणिक ने भगवान् के समवशरण को दूर से देखा तो वह अपने रथ से उतर पडे। रानिया भी अपनी-अपनी पालकियो से उतर कर पैदल ही समवशरण के अन्दर चली । राजा श्रेणिक अपनी समस्त सेना तथा पुर-वासियो को साथ लिये हुए भगवान् के दर्शनो को आए ।
समवशरण की शोभा को देखकर राजा एकदम आश्चर्य में भर गये। उन्होने श्रीमण्डप मे पहुच कर प्रथम धर्मचक्र की प्रदक्षिणा की। फिर उन्होने पीठ की पूजा करके गधकुटी के मध्य मे सिंहासन पर विराजमान श्री जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन किये । राजा श्रेणिक ने अपनी रानियो सहित भगवान् की गंधकुटी की तीन प्रदक्षिणाए की। फिर उन्होने बड़े भक्तिभाव से भगवान् का पूजन किया। पूजन करके वह बड़े प्रेम से भगवान् की इस प्रकार स्तुति करने लगे