Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

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Page 279
________________ केरल यांचा मध्याह्न का समय है। सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार अपनी राजसभा में बैठे हुए है कि दौवारिक ने आकर कहा-- "सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय।" "क्या है द्वारपाल ? "देव । व्योमगति नामक एक विद्याधर दक्षिण के केरल देश का निवासी द्वार पर खड़ा हुआ है । वह देव के दर्शन करना चाहता है।" "उसे अत्यन्त आदरपूर्वक अन्दर भेज दो।" यह सुनकर द्वारपाल वापिस चला गया। इसके थोडी ही देर बाद एक अधेड़ आयु के व्यक्ति ने सभा में प्रवेश किया। इसका मुख का वर्ण अत्यन्त गौर था और उसमें से तेज निकल रहा था। उसके शरीर पर अत्यन्त बहुमूल्य राजसी वस्त्र थे। उसके सिर पर मुकुट तथा कानो में कुण्डल थे। उसने आते ही कहा "राजराजेश्वर सम्रा, रिपक बिम्बसार की जय।" इस पर राजा बोले"आप इस सिंहासन पर विराजिये। आपका कहा से आना हमा?" सम्राट् के यह कहने पर वह व्यक्ति अपने निर्दिष्ट सिंहासन पर बैठकर बोला "राजन् । मलयाचल पर्वत के दक्षिण भाग में समुद्र के किनारे केरल नामक एक नगर है। उस नगर का राजा मृगाक विद्याधर अत्यन्त धार्मिक तथा गुणवान् है। उसकी स्त्री का नाम मालतीलता है, जो अत्यधिक शीलवती, गुरसवती तथा स्वर्ण के समान कान्ति बाली है। मै उस महारानी मालतीलता का भाई हूँ। मेरा नाम ज्योममति विद्याधर है । मैं केरल नगर के समान ही १

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