Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

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Page 271
________________ बिम्बसार द्वारा भगवान् के दर्शन पक्षियों ने भी वैरभाव त्याग दिया है। सिह, मृग आदि शान्ति से एक दूसरे पास बैठे हुए है। हथिनी सिह के बालक को दूध पिला रही है। मृगो के बच्चे सिहिनी को माता बुद्धि से देख रहे है। सर्पो के फणो पर मेढक इस प्रकार नि शक बैठे है, जिस प्रकार श्रात पथिक वृक्षो की छाया में प्राश्रय लेते है । जिन लोगों का इस जन्म मे ही किसी कारणवश वैर हो गया था, वे भी अपने वैर-भाव को छोडकर शान्ति से बैठे हुए है। राजराजेश्वर ! उन भगवान् के आगमन से प्रकृति को भी ऐसा भारी आनन्द हुआ है कि वृक्षों में सभी ऋतु के फल, फूल तथा पत्ते आ गए है। इसीलिये मै उनको अपनी डाली में सजा कर देव के सन्मुख ला सका हूँ। खेतो मे स्वादिष्ट धान पक रहे है । प्रजाके सुख के लिये वन मे सब प्रकार की सर्वरोगनाशक तथा पौष्टिक बूटियां उत्पन्न हो रही है । हे महाराज | श्री महावीर जिनेन्द्र के पधारने से एक साथ इतने चमत्कार हो रहे है कि उनका वर्णन वारणी द्वारा नही किया जा सकता । मै राजसेवक हूँ। मेरा कर्तव्य महाराज को सम्वाद देना था। अब आप जैसा उचित समझे करे।" वनमाली के इन शब्दो को- सुनकर राजा श्रेणिक को बडा मानन्द हुआ। प्रेम से उनके नेत्रो मे जल आ गया तथा रोमाच खडे हो गए। उन्होने प्रथम अपने गले से बहूमूल्य रत्नजटित कण्ठा उतार कर माली को देते हुए कहा "माली ! इस शुभ सवाद को सुनाने के लिये हम तुमको यह पारितोषिक देते है।" माली ने कण्ठे को लेकर प्रथम हाथ जोडकर सिर से लगाया और फिर अपने गले म उसे धारण कर लिया। राजा श्रेणिक इस सवाद को सुनकर तत्काल अपने राजसिहासन से उतर पडे। उन्होने विपुलाचल पर्वत की दिशा मे सात पग जाकर भगवान् महावीर स्वामी को वहीं से तीन बार नमस्कार किया। इसके पश्चात् उन्होने अपने सिहासन पर फिर बैठकर यह आज्ञा दी २७३

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