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भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञा मुक्त हो चुके थे। यह सब केवलज्ञानी थे। इस प्रकार इन गणधरों के पानी ४२०० मुनि थे, किन्तु भगवान् महावीर के संघ में मुनियों की समस्त सख्या १४००० थी।
भगवान् महावीर स्वामी ने मुनि-संघ बनाने के अतिरिक्त महिलाओं क दीक्षित करके उनका भी संघ बनाया था। महिलाओं में सबसे प्रथम दीक्षा लेनी वाली उनकी गृहस्थ जीवन की मौसेरी बहिन महासती चन्दनबाला थी। जैन साध्वियों को आर्यिका कहा जाता था। महासती चन्दनबाला के संघ में छत्तीस सहस्र आर्यिकाएं थी। वह सभी मुनियों जैसे कठिनद्वतों,संयम और आत्म-समाषि का साधन करती थी। आर्यिकायें केवल एक वस्त्र पहनती थीं।
भगवान् का तीसरा संघ श्रावका का था, जो सबके सब अणुप्रनों के भारक गृहस्थ थे। उनकी संख्या एक लाख थी। इनमें प्रमुख श्रावक सांणस्तक ये हो
भगवान के चौथे. संघ में तीन लाख श्राविकाएं थी, जिनमें मुख्य सुल्सा तथा रेवती थी। इस प्रकार भगवान् के चतुर्विध सघ में मुनि, प्रायिकाएं, श्रावक तथा श्राविकाएं थीं। इनके अतिरिक्त भगवान् के भक्त अविरत गृहस्थो की सख्या इन सबसे कई गुनी थी।
केवल ज्ञान होने के पश्चात् भगवान् महावीर ने अपने चतुर्विध संघ सहित स्थान-स्थान पर घूमते हुए धर्म का प्रचार किया। यद्यपि भगवान ने समस्त उत्तरी भारत का भ्रमण किया, किन्तु दक्षिणी भारत में भी वह कुछ स्थानों पर अवश्य गये। फिर भी उनका विहार विशेष रूपसे मगध तथा वैशाली में ही हुआ।
केवल ज्ञान के बाद भगवान् सर्वप्रथम मगध गये और वहां से वैशाली आये थे। फिर आपने श्रावस्ती, वैषष्ठी आदि स्थानों में उपदेश दिया। अपने तीस चतुर्मासों में से भगवान् ने चार वैशाली में, चौदह राजगृह में, छ. मिथिला में, दो भद्रिका में, एक अलभीक में, एक पान्थि भूमि में, एक श्रावस्ती में तथा अंतिम पावापुर में पूर्ण किया था। फिर भी उन्होंने समस्त उत्तरी भारत को अपने उपदेश से तार्थ किया था।