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भगवान महावीर स्वामी को केवल हा अतिरिक्त वह बिना दी हुई और कोई वस्तु नही लेते। अपनी स्त्री के अतिरिक्त वइ ससार की सभी स्त्रियों को माता तथा बहिन समझते है तथा परिग्रह की वस्तुओं का परिमाण कर लेते है कि मैं इतने समय मे इतनी वस्तुए अमुक परिमाण मे अपने पास रखूगा, उनसे अधिक न रखू गा। मुनियो के लिये यह पाचो यम अथवा महाव्रत कहलाते है, किन्तु गृहस्थो के लिये यही पञ्च प्रणवत कहलाते है । मुनियो को पच महाव्रत के अतिरिक्त पाच समितियो तथा तीन गुप्तियो का भी पालन करना चाहिये । पाच समितिया ये है
ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान-निक्षेपण समिति तथा उत्सर्ग समिति । जीवो की रक्षा करते हुए सामने की चार हाथ भूमि को देखकर चलने को ईर्या समिति, हित, मित, प्रिय वचन बोलने को भाषा समिति दिन मे एक बार ऐसा शुद्ध भोजन लेने को एषणा समिति कहते है जिससे तप की वृद्धि हो, न कि शरीर को रसो से पुष्ट किया जावे। तप के उपकरण कमण्डलु, पीछी आदि तथा ज्ञान के उपकरण शास्त्र आदि को इस प्रकार देखकर रखने तथा उठाने को आदान-निक्षेपण समिति कहते है कि कोई जीव उनके नीचे न पा जावे। निर्जन्तु स्थान देखकर मलमूत्र का त्याग करने को उत्सर्ग समिति कहते है। इन पाचो समितियो का पालन करना प्रत्येक मनि के लिये आवश्यक है। ___ मन को वश में करने को मनोगुप्ति, वचन के वश में करने को वचनगुप्ति तथा काय के वश में करने को कायगुप्ति कहते हैं। यह तेरह प्रकार का मुनियो का चारित्र है।
इन्द्रभूति-भगवन् । मै ब्राह्मण-विद्यार्थी द्वारा बतलाये हुए श्लोक के अर्थ को तो समझ गया, किन्तु कृपा कर यह बतलाइये कि ईश्वर तथा जीव का परस्पर क्या सम्बन्ध है ?
भगवान-जीव के अतिरिक्त ससार मे नित्य-मुक्त कोई ईश्वर नही है। यह जीव ही रत्नत्रय का पालन करके ईश्वरत्व को प्राप्त करता है।
इन्द्रभूति-तो भगवन् ! इस संसार का स्रष्टा कौन है ?