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श्रेणिक बिम्बसार चीटी, मकोडा आदजिन जीवो के केवल स्पर्शन, रसना धारण तथा चक्षु यह पर इन्द्रिया ही हों तथा कान न हो उनको चौइन्द्रिय कहा जाता है, जैने मक्खिया, भौरा, बरं, तितली आदि। किन्तु जिन जीवो के पाचो इन्द्रिया हो उन्हे पञ्चेन्द्रिय जीव कहा जाता है । सयमी पुरुष को इन छहो काय के जीवो की रक्षा करके अपने परलोक को सुधारना चाहिये।
इन्द्रभूति-भगवन् ! परलोक को किस प्रकार सुधारा जा सकता है ?
भगवान-इसके लिये सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र इन तीन रत्नत्रये को धारण करना चाहिये । अन्य धर्मों में इनको व्यावहारिक दृष्टि से भक्तियोग, ज्ञानयोग तथा कर्मयोग कहा गया है। इनमें से एक-एक का अवलम्बन करने से कभी भी उद्धार नहीं हो सकता। जिस प्रकार किसी मार्ग पर जाने के लिये प्रथम यह आवश्यक है कि उस मार्ग के ज्ञान के साथ-साथ यह विश्वास हो कि उस मार्ग पर जाने से अमुक स्थान तक निश्चय से पहुंचा जा सकता है, उसी प्रकार सम्यक् दर्शन तथा सम्यक् ज्ञान का होना भी आवश्यक है। फिर जिस प्रकार उस मार्ग पर चलकर ही गतव्य स्थान पर पहुचा जा सकता है उसी प्रकार सम्यक् चारित्र का पालन करना भी आवश्यक है। .
इन्द्रभूति-तो भगवन् । क्या व्रत तथा समितिया सम्यक् चारित्रे का अग है।
भगवान-संसार सागर से पार उतरने के लिये व्रतों का पालन करना आवश्यक है । पालन करने की दृष्टि से चारित्र के दो भेद है-एक सकल चारित्र, दूसरा विकल चारित्र। सकल अर्थात् पूर्ण चारित्र का पालन गृहत्यागी मुनि ही कर सकते है, किन्तु गृहस्थ विकल अथवा एकदेश चारित्र का पालन करते है । व्रत पाच है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । साधु को इनका पूर्णतया पालन करना चाहिये, किन्तु गृहस्थ को इनका पालन करने में इतनी छूट दी आती है कि मृहस्थ को स्थावर जीवो की अहिंसा में ढिलाई करते हुए संजीवो की हिंसा का पूर्ण त्याग करना चाहिये। व्यापार आदि की अनिवार्य मावश्यकता होने पर वह थोडा झूठ बोल सकते हैं । जल तथा मिट्टी के