Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

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Page 268
________________ श्रेणिक बिम्बसार mmmmmmation भगवान-जिस प्रकार इस जीव को कर्मफल-दाता कोई नहीं है, उसी प्रकार इस सृष्टि का स्रष्टा भी कोई नही है। जिस प्रकार पौद्गलिक कर्मवर्गणाए जीव को स्वयं कर्मफल देती है उसी प्रकार पौद्गलिक नियमो द्वारा अनादि काल से सृष्टि की उत्पत्ति तथा प्रलय होती रहती है। सृष्टि को उत्पन्न करने अथवा उसमें प्रलय करने वाला कोई ईवर या परमात्मा नही है । इन्द्रभूति-भगवन् ! आपने मुझे अमृततत्त्व का उपदेश देकर मेरे अज्ञानान्धकार को नष्ट किया है। अब मै गृहस्थ के बन्धन मे न पडकर अपने आत्मा का कल्याण करूगा । कृपा कर मुझे दीक्षा दे। __इस पर भगवान् ने गौतम इन्द्रभूति को तुरत दीक्षा दे दी। उनके साथ ही उनके दोनो छोटे भाइयों-अग्निभूति तथा वायुभूति तथा पाँच सौ शिष्यो ने भी दीक्षा ले ली। भगवान् ने दीक्षा देकर तीनो गौतम बन्धुनों को अपना गणधर पद देकर सम्मानित किया। उनके अतिरिक्त भगवान् के आठगणधर और भी थे। तीनों गौतम गणधरों में से प्रत्येक के गण मे पांच-पाच सौ मुनि थे। चौथे गणधर आर्यव्यक्त भारद्वाज गोत्र के थे। उनके गण में भी ५०० मुनि थे। पाचवें गणधर सुधर्माचार्य वैशम्पायन गोत्र के थे। उनके आधीन भी ५०० मुनि थे। छठे गणधर मण्डिकपुत्र अथवा मण्डितपुत्र वशिष्ठ गोत्र के थे। वह २५० श्रमणों को धर्मशिक्षा देते थे। .. सातवें गणधर मौर्यपुत्र कश्यपगोत्री थे। वह २५० मुनियो को शिक्षा देते थे। आठवें.गणधर अकम्पित गौतम गोत्र के तथा नौवें अचलवृत हरितापन गोत्र के थे । यह दोनों ही तीन-तीन सौ श्रमणों को धर्म-ज्ञान अर्पण करते थे। दसवें गणधर मैत्रेय तथा ग्यारहवें प्रभास काण्डिन्य गोत्र के थे। इन दोनो के संयुक्त प्रबन्ध में ३०० मुनि थे। इनमें से केवल इन्द्रभूति गौतम तथा सुधर्माचार्य ही भगवान् की निर्वाण प्राप्ति के पश्चात् जीवित रहे। अवशेष नौ गणधर भगवान् के जीवन काल में ही

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