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श्रमण गौतम
"मेरा मतलब बिल्कुल यही था।"
घटना ईसा के जन्म से भी छ सौ तेईम वर्ष पहले की है। आजकल के नेपाल राज्य की इस समय जहा दक्षिणी सीमा है, वहा रोहिणी नदी के पश्चिमी किनारे पर उन दिनो शाक्यवंशीय क्षत्रियो की राजधानी कपिलवस्तु बसा हुआ था। वहा के राजा का नाम शुद्धोद्धन था। उनकी दो रानिया थी-मायादेवी तथा प्रजावती। राजा की ४५ वर्ष की आयु मे मायादेवी को गर्भ रहा । प्रसवकाल समीप आने पर मायादेवी ने अपने पति से इच्छा प्रकट की कि वह अपने पितृगृह कोलियो की राजधानी देवदह जाना चाहती है। राजा ने कपिलवस्तु से देवदह तक की यात्रा का महारानी के सम्मान के अनुरूप प्रबब कर दिया। कितु रानी देवदह पहुँचने भी न पाई थी कि मार्ग मे लुम्बिनी वन में शाल वृक्ष के नीचे उनके प्रसव हो गया। यह वन भी कपिलवस्तु राज्य में ही था। रानी की यात्रा समाप्त हो गई और वह वहा से वापिस कपिलवस्तु आई। यहा आने पर मायादेवी का प्रसव के सातवे दिन स्वर्गवास हो गया । इस प्रकार गौतम बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व सन् ५६३ में हुआ।
राजा शुद्धोदन के अभी तक पुत्र नहीं हुआ था। अतएव उन्होने बड उत्साह से पुत्र का जन्मोत्सव मनाया । जन्म के पाचवे दिन राजपुरोहित विश्वामित्र ने शिशु का नाम गौतम अथवा सिद्धार्थ रक्खा । सातवे दिन माता का स्वर्गवास होने पर इनकी विमाता प्रजावती ने इनका लालनपालन किया।
राजकुमार का जन्म वृत्तान्त सुनकर असित महर्षि अपने भागिनेय नारद सहित कपिलवस्तु पहुंचे। उन्होने गौतम के शरीर का भलीभांति निरीक्षण करके उसमे महापुरुष के बत्तीस लक्षण तथा अस्सी अनुव्यजन पाए । महर्षि ने महाराज के भाग्य की सराहना करके उनसे कहा कि यह बालक या तो चकवर्ती राजराजेश्वर होगा अथवा पूर्ण बुद्ध योगेश्वर होगा । उन्होने उसी समय अपने भागिनेय को उपदेश दिया कि यदि यह बालक सन्यास ले तो तुम इसके शिष्य होना।