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श्रेणिक बिम्बसार
युवराज ने एक शीघ्रगामी दूत द्वारा सम्राट श्रेणिक बिम्बसार के पास यह समाचार भिजवा दिया कि वे कुमारी चेलना के साथ पा रहे है। इस समाचार से सारे राजगृह मे बडा भारी उत्सव मनाया गया। कुमार का स्वागत करने के लिये सारे नगर को नये सिरे से सजाया गया। सम्राट् स्वय भी अपनी चतुरगिणी सेना लेकर अत्यन्त ऐश्वर्य के साथ उनका स्वागत करने के लिये नगर के बाहिर निकले । अपने बाजो का शब्द सुनते ही कुमार बहुत प्रसन्न हुए। जब उन्होने सम्राट् को आते देखा तो वह रथ से नीचे उतर कर उनके चरणो मे गिर पडे । सम्राट ने उनको उठाकर छाती से लगा लिया । कुमारी चेलना को एक अत्यन्त सजी हुई पालकी मे बिठला दिया गया। अब इस जुलूस ने अत्यन्त मथर गति से नगर की ओर बढना प्रारम्भ किया। नगर के द्वार पर पहुचने पर सम्राट को तोपो की सलामी दी गई। यहा जनता का एक बडा भारी समूह विद्यमान था। उसने सम्राट् को देखकर उच्च शब्द से विजय घोष किया--'सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय ।"
"युवराज अभयकुमार की जय ।"
नगर मे स्थान-स्थान पर युवराज की आरतिया उतारी गई । अनेक स्थानो पर उनका पान आदि से सत्कार किया गया। अन्त मे राजमहल के समीप आने पर जुलूस रोक दिया गया । कुमारी चेलना की पालकी के रनवास के द्वार पर आने पर सम्राट की माता महारानी इन्द्राणी देवी ने उसका स्वागत किया। फिर वह उसको अत्यन्त सजे हुए विवाह-मण्डप मे ले गई । यहा उनका सम्राट के साथ विधिपूर्वक विवाह कर दिया गया। विवाह वेदी पर सम्राट् ने घोषणा की कि वह महारानी चेलना को पटरानी पद पर अभिषिक्त करते है। ___ इस प्रकार युवराज अभयकुमार की चतुरता से सम्राट् को लिच्छवी कुमारी चेलना देवी की प्राप्ति हुई । अब सम्राट् चेलना देवी को एक अत्यन्त उत्तम महल मे ठहराकर आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगे । रानी चेलना भी सम्राट् को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। वह उनके सपर्क से शीघ्र ही अपने माता के वियोग-दुख को भूल गई।