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चम्पा का पतन
करना आरंभ किया । एक मार्ग से युवराज श्रभयकुमार दो सहस्र सैनिको को लेकर स्वयं अन्तपुर की ओर चले । एक अन्य मार्ग द्वारा एक सहस्र सैनिक राज सभा की ओर तथा तीसरे गुप्त मार्ग द्वारा एक सहस्र सैनिक प्रधान द्वार की ओर चले । चम्पापुरी मे रहने वाले दो सहनु मगध सैनिक भी भरत्र-शस्त्रो से लैस होकर अपने को छिपाते हुए मुख्य-मुख्य नांको पर लग गये । प्रधान सेनापति जम्बूकुमार अपनी समस्त सेना को तैयार करके मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर खडा हुआ उसके खुलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
युवराज तो भूमिगत मार्गों के विशेषज्ञ थे ही, उन्होने उस सारे मार्ग को लगभग आधे पहर मे पार कर लिया। जिस समय वह अन्त पुर में अपने सैनिकों के साथ पहुँचे तो दृढवर्मा यहा गहन निद्रा में सोया हुआ था । उन्होने फुर्ती से दृढवर्मा को गिरफ्तार करके अन्तःपुर के सभी द्वारो पर अपने प्रहरियों को नियुक्त कर दिया । दृढवर्मा ने जब अपने को वेबस पाया तो उसने तुरंत ही अपनी अंगूठी में लगी हुई हीराकनी को चाट कर आत्महत्या कर ली । उसी समय युवराज अभयकुमार ने तुरही बजवाई। उसका शब्द सुनने ही मगध सैनिको ने प्रधान द्वार के पास सुरंग में से निकल कर उसे खोल दिया । उस समय प्रधान द्वार पर कुल पाच-छ सैनिक थे । उनको सुगमता से वश में कर लिया गया ।
प्रधान द्वार के खुलते ही प्रधान सेनापति जम्बूकुमार ने मगध-सेना के साथ तुरन्त ही उसमें प्रवेश किया। अब तो सारे नगर पर अधिकार करके दृढवर्मा की समस्त सेना को बंदी बना लिया गया। समस्त मगध सेना में यह कठोर आज्ञा प्रचारित कर दी प्रकार की लूटपाट न की जावे ।
इस प्रकार अत्यन्त शान्तिपूर्वक अंग देश पर सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार का अधिकार हो गया । जिन बदी सैनिकों ने सम्राट् के प्रति भक्ति की शपथ लेने का विचार प्रकट किया उनको मगध सेना में भर्ती कर लिया गया ।
युवराज अभयकुमार ने थी कि नगर में किमी
इस प्रकार अंग देश का युद्ध समाप्त हो गया और रानी चेलना ने वहां श्री वासुपूज्य भगवान् की निर्वारण भूमि पर उनकी चरण पादुकाएँ स्थापित कराई ।
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