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भगवान महावीर स्वामी को केवल न अपने कोयल जैसे कण्ठ से अनेक प्रकार के रामो का गाना प्रारम्भ किया। उनका प्रत्येक गीत कामोत्तेजक भावों को प्रकट करता था। साथ ही वह अनेक प्रकार की काम-वेष्टाएं करके भगवान् को लुभाने के लिये हाव-भाव प्रकट कर रही थी। उनके पास अनेक प्रकार के वाब भी थे, जिनको वह स्वयं ही बजा रही थी। उनको गाते-गाते बहुत समय व्यतीत हो गया, किन्तु भगवान् अपने ध्यान से टस से मस न हुए। जब वह अप्सराएं भगवान् को अपने संगीत से वश मे न कर सकी तो उनमे से कुछ ने अपने वस्त्रो को एक दम फेक कर अपने शरीर को भगवान के शरीर से रगड़ना प्रारम्भ किया। किन्तु भगवान् के ध्यान को वह तब भी भग न कर सकी । भगवान् ने कामदेव अथवा मार के इस भीषण आक्रमण को प्रत्यत शांति से सहन किया। मार अब उनको अनेक प्रकार के सासारिक भोगों के प्रलोभनो से वश में न कर सका तो अपनी उन सभी अप्सराप्रो को लेकर लज्जित होकर वहा से स्वयं ही भाग गया। भगवान् ने इस समय अपने ध्यान के प्रकर्ष से अपने प्रात्मा के अन्दर ऐसी भीषण अग्नि प्रज्वलित की, जिसमे उनके सभी धातिया कर्म नष्ट हो गए और उनको तीन लोक को हस्तामलकवत् प्रकाशित करने वाले केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान् को केवल शान होते समय उस सारे वन में एक बिजली जैसी चमक गई, जिससे जुम्भक गाव सहित ऋजुकला नदी भी प्रकाशित हो गई।
केवल ज्ञान होने के उपरांत भगवान् कुछ देर तक तो ध्यानावस्था में रहे, किन्तु कुछ देर बाद उन्होंने ध्यान खोल दिया । उन्होने जीवन में सब से अधिक मूल्यवान् वस्तु को प्राप्त कर लिया। उनके ज्ञान में भूत, भविष्य तथा वर्तमान की अनन्त पर्यायें एक साथ झलकने लगीं। उनका मुख इस प्रकार दमकने लगा, जैसे अनेक सूर्य एक स्थान पर एकत्रित होकर चमकते हों। उनके पाव भट्टी मे तपाये गए पीतल के समान चमकदार हो गए। उनके नेत्रो से अग्नि-ज्वाला जैसी ज्योति निकलने लगी।
केवल ज्ञान होने पर देवतामो ने उनके समवशरण अथवा धर्मसभा