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चम्पा का पतन
"मुझसे तो यह विलम्ब सहन नही होता महामात्य ! आज सात दिन से चम्पा के दुर्ग से हमारे ऊपर तीरी की वर्षा की जा रही है, जैसे वह मगध सेना को गाजर-मूली ही समझते हो ।”
" किन्तु इसमें तुम्हारी क्या हानि है सेनापति जम्बूकुमार ? तुमने नौकाओ में बालू भरकर उनकी नोट में अपनी सेना को खड़ा किया हुआ है। मुख्य सेना को तुमने शिविर में रखकर मोर्चे पर केवल इने-गिने सैनिको से ही काम चलाया हुआ है।"
जम्बूकुमार - इसमें मगध सेना का बडा अपमान हो रहा है महामात्य ! लोग कहते हैं कि मगध सेना संसार भर में सबसे प्रबल होने पर भी चम्पा जैसे छोटे से दुर्ग पर किस प्रकार झख मार रही है ।
महामात्य - किन्तु दुर्ग का पतन होने पर यह क्या कहेंगे ?
जम्बूकुमार:- तब तो उनको यथार्थ बात को मानना ही पड़ेगा । किन्तु इसमें सन्देह नही महामात्य । कि चम्पा का दुर्ग संसार के प्रबलतम दुर्गों में से एक है। उनके पास अन्न-जल की कोई कमी नहीं है । इस प्रकार तो हम एक वर्ष तक भी दुर्ग का घेरा डाले रहेंगे तो भी इस दुर्ग का पतन नही होगा ।
अभयकुमार - किन्तु अम्पने यह भी पता लगाया कि इस दुर्ग को कौशाम्बीनरेश ने जीत कर दधिवाहन को किस प्रकार मार डाला था ?
महामात्य - उस युद्ध में कौशाम्बी नरेश को दो कारणों से सफलता मिली भी। एक तो उन्होने प्रकट युद्ध की अपेक्षा कूट युद्ध का श्राश्रय अधिक लिया था, दूसरे उस समय इस दुर्ग की भी इतनी अच्छी दशा नही थी । महाराज दधिवाहन समझते थे कि उनको कभी भी कोई युद्ध करना नही पड़ेगा । श्रतएव उन्होने दुर्ग को अनेक स्थानों में प्ररक्षित छोडा हुआ था, किन्तु दृढवर्मा ने अपने पिता के सिंहासन पर न बैठकर निर्वासित जीवन व्यतीत करके राज्य