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वैशाली तथा मगध की संधि "सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की जय" "सम्राज्ञी चेलना की जय"
सम्राट् बिम्बसार तथा महारानी अत्यधिक बहुमूल्य वस्त्र पहिने हुए थे। उनके वस्त्रो के ऊपर पड़े हुए उनके विविध प्रकार के रत्नजटित आभूषरण इस समय के ,श्य को और भी आकर्षक बना रहे थे। उन दोनो के सिर पर मुकुट शोभा दे रहा था, जिसके रत्नो का प्रकाश सारे बजडे मे पड रहा था। वह दोनो बजडे के ऊपरी भाग मे खुले आकाश के नीचे एक रत्नजटित सिंहासन पर बैठे हुए थे। उनके सिर पर छत्र लगा हुआ था और कुछ सैनिक उनको चंवर ढुला रहे थे।
राजा चेटक भी अपने राजसी सम्मान के साथ अपने खुले बजड़े पर बैठे हुए थे। उनके पास महाबलाधिकृत सुमन बैठे हुए थे। क्रमश दोनो बजडे दोनो तट से बढते हुए भागीरथी की मध्य धार मे आगये। दोनो ओर के सैनिक उनको अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक देख रहे थे। जब दोनो बजडे एक दूसरे के साथ मिल गये तो दोनो ओर की सेनाप्रो ने अपने-अपने राजा की फिर जय बोली।
राजा चेटक के नेत्र बडी उत्सुकता से अपनी पुत्री को देख रहे थे। यद्यपि उनको चेलना के गुप्त रूप से चले जाने तथा उसके एक अजैन के साथ विवाह करने पर दुख था, कितु उसके वर्तमान सौभाग्य से उनको सतोष भी था। उनको देखते ही प्रथम रानी चेलना बोली
"पिता जी । मै आपके चरणो में प्रणाम करती है।" चेटक-प्रखण्ड सौभाग्यवती हो बेटी .
चेलना-मुझे अखण्ड सौभाग्यवती का आशीर्वाद देकर पिता जी फिर आप मेरे सौभाग्य-देवता के साथ युद्ध क्यो कर रहे है ? कृपया युद्ध बन्द कर दे। आप जानते है कि मगध की सेनाओं को जीतना कोई सुगम कार्य नहीं है। फिर आपके हमारे बीच मे कोई ऐसे भारी मतभेद भी तो नहीं है, जिनके लिये युद्ध अनिवार्य हो । अतएव आप इस व्यर्थ के रक्तपात को रोक दे।
राजा चेटक-मै सेनाओं को अभी पीछे हटने का आदेश देता है। आप दोनो अपने बजडे से उतर कर हमारे बजडे पर आकर हमारा आशीर्वाद प्रहण करें।
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