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श्रेणिक बिम्बसार
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इस पर चलना ने अपने पति की ओर देखा । उनको उतरने के लिये तैयार देखकर वह उनका हाथ पकडकर महाराजा चेटक के बजडे की
ओर बढी । राजा चेटक ने अपने बजडे पर आगे बढकर सम्राट् बिम्बसार तथा रानी चेलना को अपकी छाती से लगा लिया और बोले
"मै आप दोनों को आशीर्वाद देता हूं कि आपकी जोडी चिरजीवी हो।" बिम्बसार-मै आपका आशीर्वाद पाकर अपने को धन्य मानता हूँ।
इसके बाद रानी चेलना अपने पिता की छाती से लगकर उनसे मिल कर रोने लगी। राजा चेटक के नेत्रो मे भी उसको देखकर ऑसू आ गये। हृदय के उद्गार हल्के होने पर चेलना बोली
"पिता जी I मुझे दुख है कि मै आपकी जानकारी के विना अपने बाल-चापल्यवश घर से चली आई । मुझे क्षमा कर दीजिये।"
राजा चेटक-बेटी । जो कुछ हुआ उसका शोक न करो। अब तो तुम इस बात का यत्न करो कि जिससे तुम्हारे पतिदेव को भी जैन धर्म में श्रद्धा हो जावे।
चेलना-पिता जी । मै तो इनको जैनी समझ कर ही घर से आई थी, किन्तु यहा आने पर मुझे पता चला कि यह जैन न होकर बौद्ध है। तथापि इन्होने मुझे जैन धर्म का पालन करने की पूरी स्वतत्रता दी हुई है। यह सदा ही मेरे सुख मे सुख तथा मेरे दुख मे दुख मानते है।
राजा-बेटी, यह महापुरुष है। महापुरुषो का आचरण ऐसा ही हुआ करता है। अच्छा, अब तुम अपने बजडे पर जाओ।
चेलना-पिता जी | मेरी पूजनीया माता को मेरी चरणवन्दना कहे।
इसके पश्चात् राजा चेटक ने रानी चेलना तथा सम्राट् बिम्बसार दोनो को फिर हृदय से लगाकर अपने बजड़े पर जाने की अनुमति दी। उनके अपने बजडे पर आने पर दोनो ओर से खुशी के बाजे बजने लगे और जय-जयकार की ध्वनि होने लगी। दोनो बजड़ो के अपनी-अपनी सेना मे चले जाने पर गगा के दोनो तट की सेनाए हट गई और युद्ध बन्द हो गया ।