________________
-
जैन धर्म का परिग्रहण चीनी पर चली गई। उन्होने मुनिराज के शरीर को काट-काट कर खोखला कर दिया था। अतएव रानी ने उनके शरीर को उष्ण जल में भिगोये हुए कोमल वस्त्र से धोया। फिर रानी ने उनकी जलन को कम करने के लिये उनके शरीर पर चन्दन मादि शीतल पदार्थों का लेप किया। इस प्रकार मुनिराज के उपसर्ग को अपने हाथों से दूर करके वे दोनो उनको नमस्कार कर आनन्दपूर्वक उनके सामने भूमि पर बैठ गये। राजा मुनिराज की ध्यान-मुद्रा पर आश्चर्य कर रहे थे । वह उनके दर्शन से बहुत ही सतुष्ट हुए।
मुनिराज रात्रि भर उसी प्रकार ध्यान मे लीन खडे रहे और राजारानी जागरण करते हुए उनके सामने उसी प्रकार बैठे रहे। रात्रि समाप्त होने पर जब सूर्य का प्रकाश चारो ओर फैल गया तो रानी ने मुनिराज के चरणो का प्रक्षालन किया । फिर उसने मुनिराज की फिर से तीन प्रदक्षिणा की और उनकी पूजा कर इस प्रकार उनकी स्तुति करने लगी___ "प्रभो । आप समस्त ससार मे पूज्य एव अनेक गुणो के भडार हैं। आपके गले में सर्प डालने वाले तथा आपको फूलो का हार पहिनाने वाले दोनो ही आपकी दृष्टि मे समान है। भगवन् ! आप इस संसाररूपी समुद्र को पार कर चुके है तथा औरो को भी इसके पार उतारने वाले हैं। आप सभी जीवो के कल्याणकारी है । करुणासिंधो । अज्ञानवश जो कुछ आपकी अवज्ञा करके हम से आपका अपराध हो गया है उसे आप क्षमा करें। यद्यपि मैं जानती हूँ कि आप राग-द्वेष से रहित तथा किसी का भी अहित न करने वाले है, तथापि आपकी अवज्ञा-जनित हमारा अशुभ कार्य हमें संताप दे रहा है। प्रभो । प्राप मेघ के समान सभी जीवो का उपकार करने वाले, धीर, वीर एव शुभ भावना वाले है ।"
रानी के इस प्रकार मनि की स्तुति कर चुकने पर उनको राजा तथा रानी दोनो ने ही फिर भक्ति-भाव से प्रणाम किया। मुनिराज इस समय तक अपना ध्यान छोड कर बैठ गये थे। उन्होने उन दोनो से कहा
"आप दोनो की धर्म-वृद्धि हो।"