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रानी चेलना का धर्म संघर्ष
बुद्ध की कृपा से ही जीवो को वास्तविक धर्म का पता लगकर सब प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती है।
राजा के मुख से बुद्ध तथा बौद्ध धर्म की इतनी अधिक प्रशसा सुनकर रानी ने उत्तर दिया
__ "प्राणनाथ | भाप जो बौद्ध धर्म की इतनी प्रशसा कर रहे है सो वह इतनी प्रशसा के योग्य नही है। उससे जीवो का लेशमात्र भी हित नहीं हो सकता । ससार मे सर्वोत्तम जैन धर्म ही है। जैन धर्म छोटे-बडे सब प्रकार के जीवो पर दया करने का उपदेश देता है, जब कि गौतम बुद्ध स्वय मासाहार करते है । जैनियों के अभी तक के तेईसो तीर्थङ्कर सर्वज्ञ थे। अब चौबीसवें तीर्थकर भगवान् महावीर भी केवल ज्ञान प्राप्त करके सर्वज्ञ हो जायेंगे और सब जीवो को जन्म, जरा तथा मरण के दुख से छूटने का उपदेश देंगे।"
राजा-भगवान् महावीर तो तुम्हारे भानजे है न रानी ।
रानी-भानजे है नही, वरन् थे। जब तक वह ग्रहस्थ में थे वह मेरे भानजे थे और मै उनकी मौसी थी, किन्तु अब तो वह सभी सासारिक बंधनों को छोडकर मुनि-दीक्षा लिये हुए है, केवल ज्ञान हो जाने के बाद वह मुझ सहित सारे मुमुक्षु जीवो के गुरु होगे। जैन धर्म मे कर्मफल का दाता कोई यमराज अथवा धर्मराज नही माना गया है। वह जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है। जैन धर्म में वही यथार्थ उपदेशदाता सच्चा प्राप्त माना गया है, जो बाह्य तथा आभ्यन्तर सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग कर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह रूप पच महाव्रत का पालन करता हो, जिसको केवल ज्ञान हो चुका हो, जो निम्रन्थ हो, तथा उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों को अपने जीवन मे चरितार्थ करने वाला हो । प्राणनाथ । मैंने संक्षेप में जैन धर्म का वर्णन किया है, इसका विस्तारपूर्वक वर्णन तो कुछ समय पश्चात् केवल ज्ञान होने पर भगवान् महावीर स्वामी ही करेंगे। मेरा विश्वास है कि जो जीव इस जैन धर्म से विमुख होकर घृणा करते हैं उनको कदापि भाग्यशाली नही कहा जा सकता।
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