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श्रेणिक बिम्बसार
क्या हम उसको खा गये ? तुझको हम साधुप्रो के साथ इस प्रकार का व्यवहार नही करना चाहिये।"
सजय के इन वचनो को सुनकर रानी बोली___"गुरुप्रो । आप घबरावे नही । मै अब भी कहती हैं कि आपकी चीज आपके ही पास है। यदि आप नही मानते तो मै उसे आपके पास से निकाल कर दिखला सकती हूँ।"
रानी के इन वचनो से सजय सहित सभी बौद्ध साधु बड़े चक्कर मे पड़े। वह बार-बार यही सोचने लगे कि रानी कहती क्या है ? यह क्या बात हो गई ? अब उनको सदेह होने लगा कि 'क्या उसने हमको जूतो का भोजन करा दिया।' ऐसा विचार करते-करते उनको क्रोध के साथ-साथ वमन भी हो गया।
वमन के साथ निकले हुए उन्होने जूतो के टुकडो को भी देखा। अब तो उनके होश गुम हो गये और वह रानी की बार-बार निंदा करने लगे। अब वह रानी द्वारा तिरस्कृत होकर अत्यन्त लज्जित हुए और. वहाँ से सीधे सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार के पास गये। वहाँ जाकर उन्होने राजा को अपने अपमान का सारा वृत्तात सुनाया। वहाँ से वह चुपचाप अपने विहार मे आ गये।