Book Title: Shrenik Bimbsr
Author(s): Chandrashekhar Shastri
Publisher: Rigal Book Depo

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ जैन धर्म का परिग्रहण "प्रिये । मुझे तुमको यह सवाद देते हुए प्रसन्नता हो रही है कि अब की बार हमारे नगर मे कुछ बौद्ध साधुओं का एक सघ आया है। उनमें कई एक साधु अत्यधिक तपस्वी तथा बडे भारी ज्ञानी है। उनके ज्ञान मे समस्त ससार झलकता है। उनका ध्यान अत्यन्त उच्च कोटि का होता है। जब कोई उनसे किसी प्रकार का प्रश्न करता है तो वे ध्यान मे अतिशय लीन होने के कारण बडी कठिनता के उसका उत्तर देते है। ध्यानावस्था में उनका आत्मा एकदम मुक्त हो जाता है। वह अत्यन्त उत्तम धार्मिक तत्त्व के उपदेशक है। तप के कारण उनके शरीर से कान्ति जैसी निकलती है।" राजा के इन शब्दो को सुनकर रानी अत्यन्त प्रसन्न हुई। वह उनसे अत्यन्त विनय से बोली "कृपानाथ ! यदि आपके गुरु ऐसे पवित्र और ध्यानी है तो कृपा कर मुझे भी उनके दर्शन कराइये। जिससे ऐसे परम पवित्र महात्माओ के दर्शन से मै भी अपने जन्म को पवित्र करूं। आप इस बात पर विश्वास रखे कि यदि मेरी दृष्टि मे बौद्ध धर्म की सच्चाई जम गई और वह साधु सच्चे साधु निकले तो मै तत्काल ही बौद्ध धर्म ग्रहण कर लूगी। मुझे जैन धर्म से चिपके रहने में कोई विशेष आग्रह नही, किन्तु मै बिना परीक्षा किये किसी दूसरे के कथनमात्र से जैन धर्म का परित्याग नही कर सकती । क्योकि जो व्यक्ति हेयोपादेय को जाने बिना तथा बिना समझे बूझे केवल दूसरे के कथनमात्र से अपने मार्ग का परित्याग कर दूसरे के बतलाये हुए मार्ग पर चल पडते है उनको शक्तिहीन मूर्ख कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति अपने आत्मा का कल्याण नही कर सकते।" इसको सुनकर राजा बोले २४१

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288