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श्रेणिक बिम्बसार ___"रानी । तुम्हारा कथन पूर्णतया तर्कसंगत है। मै तुम्हारी इस बात से बहुत प्रसन्न हूँ। अच्छा, आज तुम और हम दोनो जाकर गुरुओं के ध्यानावस्था मे दर्शन करेगे।"
यह कहकर राजा वहाँ से चले गये। उन्होने साधुओ के पास ध्यान लगाने का सदेश भेजकर रानी को पालकी पर बैठा कर वहाँ जाने को कहला दिया। बौद्ध साधु एक विशेष प्रकार से तैयार किये गये मण्डप में ध्यान लगा कर बैठ गये। जिस समय वह ध्यान मे बैठे थे रानी भी उनके दर्शनो के लिये पालकी मे बैठकर आ गई। उसने उनसे कुछ प्रश्न भी किये, किन्तु उन्होने ध्यानमग्न होने के कारण रानी के किसी प्रश्न का उत्तर नही दिया।
रानी के प्रश्नो को सुनकर उनका एक शिष्य बोला
"माता | ये समस्त साधु इस समय ध्यान मे लीन है। इनका आत्मा इस समय परम तत्त्व मे लीन है । इसलिये यह देहमुक्त होने पर भी सिद्ध है। इसीलिये इन्होने आपके प्रश्नो का उत्तर नही दिया।"
शिष्य के यह शब्द सुनकर रानी चुप हो गई, किन्तु उसने उसी समय अपनी एक दासी के कान में कुछ कहकर उस मण्डप मै आग लगवा दी और एक ओर खडी होकर इस दृश्य को देखती हुई कुछ समय बाद अपने राजमदिर चली आई।
उधर मण्डप में अग्नि लगते ही सब साधु ध्यान छोड़-छोड़ कर मण्डप के नीचे से भाग निकले। जो लोग कुछ समय पूर्व ध्यानारूढ हो निश्चल बठे थे वही अब व्याकुल होकर इधर-उधर दौड़ने लगे। रानी के इस कृत्य से उनको बड़ा क्रोध आया और उन्होंने राजा श्रेणिक के पास जाकर उनको यह वृत्तांत सुनाया। बौद्ध-गुरुप्रो के मुख से इस सारे समाचार को सुनकर महाराज को भी बहुत बुरा लगा। अतएव वह अत्यन्त क्रोध में भरकर रानी के पास आये और उससे बोले
'"रानी | मण्डप मे जाकर तूने यह अतिनिन्द्य तथा नीच काम कैसे कर डाला? यदि तेरी बौद्ध धर्म पर श्रद्धा नही है और तू बौद्ध साधुनो को