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श्रेणिक बिम्बसा
सैनिको के बगल के तम्बू मे चले जाने पर महाबलाधिकृत बोले
"राजन् । मेरी सम्मति मे तो राजा श्रेणिक बिम्बसार तथा महारानी चेलना देवी से भेट करना ही उचित होगा।"
राजा-किन्तु, निश्चय से इस भेट मे सधि-प्रस्ताव किया जावेगा। हम तो उस समय ही मगध के साथ युद्ध-घोषणा करने के पक्ष मे नही थे, किन्तु लिच्छवी युवको के उत्साह तथा मगध-द्वेष के कारण ही यह युद्ध-घोषणा की गई।
सुमन-तो इसमे हर्ज ही क्या है राजन् । सधि-प्रस्ताव आवेगा तो सधि भी कर लेगे। फिर अब तो मगध के साथ की हुई हमारी सधि क्षणिक सधि न होकर स्थायी सधि होगी।
राजा-अच्छा तो मगध-सैनिको को बुलवा कर उनसे कह दिया जावे कि हम उनका प्रस्ताव स्वीकार करने को तैयार है।
इस पर बगल के तम्बू मे से मगध-सैनिको को बुलवा कर राजा चेटक बोले
"मगध-वीरो ! हम आपका प्रस्ताव स्वीकार करते है। आप लोग जाकर समाचार दे दे कि हम अपने बजरे मे महाबलाधिकृत को साथ लेकर मध्य भागीरथी मे अभी आते है।"
राजा चेटक के यह वचन सुनकर पाचो मगध-सैनिक उनको सैनिक अभिवादन कर तुरत ही वहा से वापिस अपनी नौका मे आकर अपनी सेना में चले गये।
इन सैनिको के चले जाने के बाद दोनो ओर की सेनाएँ अत्यन्त उत्सुकता के साथ भागीरथी के दोनो तटो की ओर देखने लगी। थोड़ी ही देर मे एक बडे भारी सैनिक बजडे को मगध-सेना की ओर से तथा दूसरे सैनिक बजडे को लिच्छवियो की ओर से गगा जी के मध्य भाग की ओर बढ़ते हुए देखा गया। मगध-के बजडे के जल मे आते ही मगध-सेना ने गगनभेदी स्वर में इस प्रकार उच्च घोष किया
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