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श्रेणिक बिम्बसार
श्रेणिक के कृपापात्र है और उनके महल मे जब चाहें तब जा सकते हैं।" __ युवराज अभयकुमार उन दोनो राजकन्याओ के सामने ज्यो-ज्यो राजा श्रेणिक के रूप तथा गुण की प्रशसा करते जाते थे त्यो त्यो उन कन्यानो के ऊपर एक नशा जैसा चढता जाता था । क्रमश वह राजा श्रेणिक के गुणो को सुनकर अत्यन्त मुग्ध हो गई । उनके मन में यह इच्छा उठने लगी कि हम किस प्रकार वर रूप में राजा श्रेणिक को प्राप्त करे । वह राजा श्रेणिक के गुणो पर एकदम रीझ गई । तब अत्यन्त प्रसन्न होकर अत्यन्त सकुचाते हुए ज्येष्ठा बोली___ "श्रेष्ठिवर्य ! किसी महापुरुष के ऐसे लोकोत्तर गुणो का वर्णन हमारे सामने करने से क्या लाभ, जबकि वह हमारे लिये अप्राप्य है। हम पिता के वश मे है । न जाने हमारे पिता के उन मगधेश के साथ कैसे सबन्ध हो, वरन् हम तो यह सुनती है कि हमारे गणतन्त्र तथा मगधराज का आजकल युद्ध होने वाला है। ऐसी स्थिति मे ऐसे लोकोत्तर गुणो के धारक पुरुष की इच्छा करना हमारे लिये उस बौने के समान है जो ऊँचे आम के वृक्ष से अपने हाथ से ही फल तोडना चाहता हो।"
अभयकुमार-राजकुमारी । तुमने ऐसी क्या बात कह दी ? मनुष्य सर्वशक्तिमान् है। यदि आपके मन मे राजा श्रेणिक को प्राप्त करने की इच्छा है तो मेरे पास ऐसी विद्या है कि मै आपको तुरन्त ही राजगृह नगर ले चल सकता हूं। आप केवल थोडा साहस करके चलने की हा-भर कर दीजिये।
इस पर ज्येष्ठा ने लजाते हुए कहा-"हम तो आपकी बातचीत से उन नरश्रेष्ठ के आधीन हो चुकी है। आपके उपाय मे सहयोग करने मे हमको प्रसन्नता होगी।"
अभयकुमार-"तो आप उठकर इस बाये हाथ के मार्ग में प्रवेश करें। मैं आप को राजगृह नगर में लिये चलता है।"
इस समय तक अभयकुमार के मकान से लेकर वैशाली के बाहर गगातट तक सुरंग बनकर तैयार हो चुकी थी। सुरग का द्वार बायें हाथ की एक कोठरी में खुलता था । ज्येष्ठा तथा चेलना जब उस कमरे मे आई तो वह
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