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श्रेणिक बिम्बसार
दृडवर्मा दे यह कहने पर रानी सुभद्रा और भी विलाप करके कहने लगी"हाय मेरी फूल सी बच्ची को ऐसे-ऐसे कष्ट सहने पड़े !" तब दृढवर्मा बोला
"नानी जी कष्टमिश्रित सवाद समाप्त हुआ अब । आप हर्षजनक समाचार सुनिये।"
राजा--"अच्छा फिर चन्दनबाला के साथ उस भौरे में क्या बीती ?"
हढवर्मा-वह तीन दिन तक उस भौरे मे रही। जब तीसरे दिन सेठ धनावा ने आकर उसे ऐसी दशा मे देखा तो वह बहुत दुखी होकर हक्का-बक्का रह गया। सेठानी मूलादेवी चन्दनबाला को भौरे मे बन्द करके अपने पीहर चली गई थी। अत घर मे न तो खाने-पीने का ही कोई सामान था और न हथकडी-बेडियो की चाबी ही थी। सेठ ने सोचा कि जजीरे कटवाने से पूर्व इसके भोजन का कुछ प्रबन्ध किया जावे । किन्तु उस समय घर मे कुछ कुलथी ही उबली हुई एक सूप मे रखी हुई थी। धनावा उस कुलथी को सूप समेत चन्दनबाला के सामने रख कर किसी लुहार को बुलाते गये, जिससे हाथ पैर की जजीरो को कटवाया जा सके। चन्दनबाला भौरे के दरवाजे मे खडी-खडी किसी सत्पात्र के आने की प्रतीक्षा करने लगी कि कोई आवे तो उसे दान देकर भोजन करूं।"
तब राजा चेटक बोले
"वाह बेटी चन्दना ! इस भारी आपत्ति के समय तीन दिन भूखी रह कर भी दान दिये विना न खा सकी ?"
दृढ़वर्मा-नाना जी | चन्दना ने हमारे कुल का उद्धार कर दिया। ।। आप आगे की बात तो सुनिये ।
चेटक-अच्छा | तो जल्दी कहो बेटा ।
दृढ़वर्मा-उन दिनो भगवान् महावीर स्वामी को किसी अभिग्रह के कारण पाँच मास से आहार नही मिला था और वह विना आहार घूमते-घामते उसी दिन कौशाम्बी पहुँचे, जब चन्दनबाला को भौरे मे डाला गया था।
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