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श्रेणिक बिम्बसार
गण्यमान्य व्यक्तिमो का स्वागत करने का मुझको सौभाग्य प्राप्त होता रहता है। उसको मैने अपने बनाये चित्रो से खूब सजा रखा।
अभयकुमार-तब तो सम्राट् भी आपकी चित्रशाला में आते रहते होगे।
भरत-जी युवराज । सम्राट् अभी तक तीन-चार बार कृपा कर चुके है।
अभय-क्या सम्राट् आपसे कुछ चित्र भी बनवा रहे है ?
भरत-जी, उनको तो केवल एक ही चित्र पसद है। वह तो उसी को विभिन्न मुद्रामो मे बनवाया करते है।
अभय-वह चित्र किस का है ?
भरत-वह बज्जी गणतत्र के गणपति लिच्छवी राजा चेटक की सबसे छोटी पुत्री चेलना का चित्र है युवराज ।
अभय-उसी का चित्र तो तुमने अपनी प्रथम भेट के समय सम्राट् को दिया था?
भरत-यही बात है देव । ___ इस पर अभयकुमार मन ही मन कुछ सोचने लगे। वह तुरत समझ गये कि पिता लिच्छवी राजकुमारी पर आसक्त है। उनकी समझ मे यह तुरत आगया कि सम्राट की चिन्ता का वास्तविक कारण यही है । उन्होने पिता के कष्ट के वास्तविक कारण का पता लगने पर प्रथम उस सम्बध मे अपने कर्तव्य पर विचार किया। वह सोचने लगे कि पिता का कष्ट तो दूर करना ही चाहिये। अन्तु में उन्होने इस विषय मे महामात्य वर्षकार से परामर्श करने का निश्चय किया। उन्होने चित्रकार को बिदा करके अपना रथ मगवाया और उसपर बैठ कर महामात्य से मिलने चले।
उस समय लगभग एक पहर रात्रि गई होगी। महामात्य एक बहुत बडे महल में निवास करते थे। उनके राजमहल के सामने सैनिक पहरा रहता था। किन्तु युवराज के रथ को देखते ही सैनिक उनको सैनिक ढग से अभिवादन करके