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चलना से विवाह
"आपको यह चैत्यालय पसद आया ?
इस प्रश्न को सुनकर ज्येष्ठा ने कुछ-कुछ लज्जित सी होकर उत्तर दिया“भला, इतने सुन्दर चैत्यालय को देखकर किसका मन प्रसन्न न होगा ? यह चैत्यालय आपने ही बनवाया है।
?"
अभयकुमारर-- मकान तो सब यही का है । हाँ, वेदी, मूर्ति आदि पूजन का समस्त सामान मै राजगृह से अपने साथ लाया हूँ ।
जेष्ठा - अच्छा आप राजगृह के निवासी है।
चेलना – तो क्या आप प्रतिष्ठित प्रतिमा को बराबर अपने साथ रखते है ? अभयकुमार --- ऐसा ही है राजकुमारी ।
ज्येष्ठा - तो प्रतिष्ठित प्रतिमा को साथ रखने में तो आपको बडी भारी दिक्कत होती होगी ? क्योकि प्रतिष्ठित प्रतिमा की अनेक मर्यादायें होती है, जिनका मार्ग मे पालन करना पडता है ।
अभयकुमार - तो राजकुमारी जी ! यह जीवन उम मर्यादाओ का पालन करने के लिये है। तो है और किसलिये है ?
ज्येष्ठा -- आप लोग श्री जिनेन्द्र भगवान् की अत्यन्त भक्ति-भाव से स्तुति एव उपासना करते है, इसलिये आप धन्य है । आप लोगो के समान सच्चा भक्त इस पृथ्वीतल पर दूसरा कोई दिखाई नही देता । आपका ज्ञान तथा रूप सभी अप्रतिम है । कृपा कर आप बतलावे कि राजगृह कहाँ है । वह किस देश मे है ? वहाँ का राजा कौन है ? और वह किस धर्म का पालन करता है ?” अभयकुमार —- राजकुमारियो । यदि आपको मेरा परिचय जानने की इच्छा है तो आप सुने ।
" समस्त लोक का मन हरने वाला, लाख योजन चौड़ा, गोल और तीन लोक में शोभायमान जम्बू द्वीप है । वह जम्बू द्वीप कमल के समान सुशोभित है । क्योकि जिस प्रकार कमल के पत्ते होते है, उसी प्रकार जम्बू द्वीप में भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत तथा ऐरावत नाम वाले सात क्षेत्र है । जिस प्रकार कमल मे पराग होता है उसी प्रकार इस जम्बू द्वीप में नक्षत्ररूपो
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