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श्रेणिक बिम्बसार
शान्ति ॥१६॥ कुन्थु ॥१७॥ श्रर ॥ १८ ॥ मल्लि ॥ १६ ॥ मुनिसुव्रत ॥२०॥ नमि ||२१|| नेमि ||२२|| पार्श्वनाथ ||२३|| महावीर ॥ २४ ॥ इति वर्तमानकालसबन्धिचतुर्विंशतितीर्थकरेभ्यो नमो नमः ॥
अद्य मे सफल जन्म, नेत्र े च सफले मम । त्वामद्राक्षं यतो देव हेतुमक्षयसम्पद ॥१॥ अद्य मे सफलं जन्म, प्रशस्त सर्वमङ्गलम् । ससारावतीर्णाऽह, जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥२॥ श्रद्य कर्माष्टकज्वाल, विधूत सकषायकम् । दुर्गविनिवृत्ताऽह, जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥ ३ ॥
सौम्या ग्रहा सर्वे, शुभाश्चैकादश स्थिता । नष्टानि विघ्नजालानि, जिनेद्र तव दर्शनात् ॥४॥ अद्य मिथ्यान्धकारस्य, हन्ता ज्ञानदिवाकर । उदितो मच्छरीरेऽस्मिन्, जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥५॥ अथाह सुकृतीभूता, निर्धू ताशेषकन्मषा । भुवनत्रयपूज्याऽह, जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥ ६॥
इस प्रकार स्तुति करके दोनों बहिने चैत्यालय मे भगवान् की प्रदक्षिणा देने लगी ।
अभयकुमार तो राजगृह से आये ही इन राजकुमारियो के लिये थे । वह सदा ही राजमहल के द्वार पर दृष्टि रखने का प्रबन्ध किये रहते थे । जब उनको समाचार मिला कि राजमहल से निकल कर दो राजकुमारियाँ उनकी र को ही आ रही है, तो वह भी भगवान् के दर्शन करने को शीघ्र तैयार हो गये । राजकुमारियों के दर्शन करते समय वह भी मन्दिर मे जा पहुँचे और चैत्यालय के बाहिर के बरामदे मे जाकर शास्त्र -स्वाध्याय करने लगे । राजकुमारियो ने भगवान् के दर्शन करके उनकी तीन परिक्रमा दी और फिर उनकी दीवारो को देखती हुई "बाहिर के कक्ष मे स्वाध्याय करते हुए अभयकुमार के पास से निकली । उनके समीप आने पर राजकुमार बोले
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