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चेलना से विवाह अपराह्न का समय है। मजदूर अपने-अपने कार्य में लगे हुए है। राजा चेटक की राजसभा पूर्णतया भरी हुई है । नगरनिवासी व्यापारी लोग अपनेअपने कार्य में लगे हुए है । घरो मे केवल स्त्रिया ही स्त्रिया रह गई है, जो अपने घर के काम-धन्धो से फुर्सत पाकर दो-दो, चार-चार की टोलियो मे बैठी हुई आपस मे गप्पे हाक रही है। राजा चेटक का महल भी सुनसान है। राजसेवक अपने कार्य को समाप्त कर के सभी जा चुके है। दासिया अपना-अपना कार्य समाप्त करके कोई ऊ घ रही है तथा कोई सो रही है । राज-माता स्वाध्याय मे लगी हुई है। केवल एक कमरे मे से कुछ फुसफुस का शब्द सुनाई पड़ रहा है। उनमे से एक बोली___ "बहिन चेलना | मैने भगवान् का ऐसे भक्तिभाव से पूजन करने वाले धार्मिक पुरुष अभी तक कभी नहीं सुने ।” ____ "बहिन ज्येष्ठा | इनके मधुर कण्ठ से गाये हुए जिनेन्द्र भगवान के स्तोत्रो को सुनकर मै भी प्राय. ऐसा ही सोचा करती है।"
ज्येष्ठा-"मेरे मन मे तो कई बार यह इच्छा उत्पन्न होती है कि मै न केवल उनके चैत्यालय को जाकर स्वय देखू वरन् उनको भगवान् की स्तुति करते हुए भी अपनी आखो से जाकर देख ।"
चेलना-"इच्छा तो मेरी भी ऐमी ही होती है।"
ज्येष्ठा-किन्तु अपरिचित व्यक्तियो के पास जाते कुछ सकोच होता है।
चेलना-ऐसे स्वधर्मी भाइयो के साथ तो सकोच की कोई बात नही । ज्येष्ठा-अच्छा, तो चल देख आये।
चेलना--अच्छा, चल । २१२