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श्रेणिक बिम्बसार
अभयकुमार-उसके लिये आप निश्चित रहे महामात्य | मै लिच्छवियो को इस प्रकार वश मे कर लूगा, जिस प्रकार सपेरा सापो को वश मे कर लेता है। हॉ, आपको मुझे एक सहायता और देनी होगी।
महामात्य-वह क्या?
अभयकुमार--श्रीमान् पिता जी से जाने के सबध मे अनुमति की, क्योकि उनकी अनुमति तथा आशीर्वाद के विना मेरा जाना उचित न होगा। __ अभयकुमार-आपका यह कहना यथार्थ है कुमार । मै सम्राट से मिल कर तुम्हारी इस विषय की कठिनाई को दूर कर दू गा। युवराज | आप जानते है कि सम्राट् पुत्र-प्रेम के कारण तुमको जाने की अनुमति बडी कठिनता से देगे, किन्तु मै उनको राजनीतिक दावपेच समझा कर इस विषय मे उनकी अनुमति ले ही लूगा । अब मै आपके प्रस्थान करने से पूर्व अनेक गुप्तचरो को वैशाली भेज रहा है, जिससे उनके द्वारा न केवल वहा के समाचार समयसमय पर मिलते रहें, वरन् उनके द्वारा तुम भी यहा समाचार भेज सको तथा आवश्यकता पड़ने पर बह वहा आपके काम भी आ सूके ।
अभयकुमार-आपका वह विचार बडा सुन्दर हैं महामात्य | अच्छा अब रात बहुत हो गई है । आप मुझे विश्राम करने की अनुमति दे।
यह कहकर युवराज अपने रथ पर बैठकर अपने निवास स्थान को चले गए।