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श्रेणिक बिम्बसार
समय मे वास्तविक चित्र बनाने में आज इस दास से प्रतिद्वन्द्विता करना सुगम कार्य नहीं है।
सम्राट-हा, चित्रकार । वैशाली राजसभा मे की हुई तुम्हारी प्रतिद्वद्विता के सबध मे हम सुन चुके है, किन्तु तुम तो वहाँ गणपति महाराज चेटक के अत्यधिक प्रेमपात्र थे। तुमने वैशाली को क्यो छोडा ?
भरत-प्राणो के सकट से देव । सम्राट-क्यो, प्राणो का सकट वहा क्यो आ पडा?
सम्राट् के यह कहने पर भरत ने अपने रेशमी थैले मे से चेलना का चित्र निकाल कर सम्राट् को देते हुए कहा
"देव । यह चित्र महाराजा चेटक की सब से छोटी पुत्री चेलना का है। महाराज ने इस चित्र को देखकर मुझे गुप्त रूप से मारने की आज्ञा दी थी। किन्तु मुझे पता लग गया और मै शीघ्रता में अपना सारा सामान वही छोडकर केवल यह चित्र लेकर वहा से अपने प्रारण लेकर भाग खडा हुआ।"
सम्राट चित्र को देखकर एकदम चकित हो गए और भरत से बोले
"अच्छा भरत । तुमको हम आश्रय देते है। तुम्हारी कला आदर पाने योग्य है।"
सम्राट ने यह कहकर राजसमा विसर्जित कर दी। उपस्थित सभासद् अनने-अपने स्थान को जाने लगे और सम्राट् वहा से उठकर अपने प्रमोदभवन में आए।
महाराज के प्रमोदभवन मे अनेक प्रकार की विलास-सामग्री उपस्थित थी। दीवारो पर अनेक प्रकार के चित्र लगे हुए थे । एक ओर बीचो-बीच कुछ सुन्दर आसन लगे हुए थे। महाराज एक आसन पर आकर बैठ गये और उस चित्र को देखकर मन ही मन विचार करने लगे। वे बड़ी देर तक मन में कुछ विचार करते रहे। उन्होने चित्र को देखकर कहा
"कैसा सुन्दर रूप है इस राजकुमारी का । यद्यपि इसके सौंदर्य की ख्याति आज भारत के समस्त देशों में फैली हुई है, किन्तु मुझे इसके इतनी सुन्दरी होने २००